गाँधी वाणी | Gandhi Vaani
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
262
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सत्य | १५
सत्यरूपी परमेश्वर का रोधक हं ।
५ ˆ परमेश्वर की व्याख्या अगणित रै, क्योकि उसकी विभूतियों
भी अगणित है । विभूतियों मुझे आश्चर्य-चकित तो करती है, मुझे क्षणमर
के लिए मुग्ध भी करती है, पर मै तो पुजारी हूँ सत्य-रूपी परमेश्वर का ।
मेरी दृष्टि में वही एक मात्र सत्य है, दूसरा सब कुछ मिश्या है। पर यह सत्य
अमी तक मेरे हाथ नहीं लगा है अभी तक तो में उसका शोधक-मात्र
हूँ । हाँ, उसकी शोध के लिए में अपनी प्रिय से प्रिय वस्तु को भी छोड
देने के लिए तैयार हूँ ., और इस शोधरूपी यश मे अपने शरीर को भी होम
देने की तैयारी कर লীই ১1১,
--सत्याग्रद्याश्रम, साबरमती । मार्गशीपे शुद्ध १९ स० १९८२ , “आत्मकथा
की भूमिका से , टिन्दी सस्करण | स० सा० भण्टल ]
सत्य
८ सत्य एक बिश्ञाल वृक्ष है। उसकी य्यो-प्यो सेवा की जाती ऐ
त्यो त्यो उसमे जनेक पर आते हूए दिखाए देते है । उनका अन्त ही
नहीं होता | ज्यो-ज्यो एम गदरे पैठते ₹, त्यो-त्यो उनमे से रत निकालते है
सेवा के अवसर हाथ आते रहते है । '
দিত জান ব* | भाग ३, अध्याय ११ , पृष्ठ २७० । स० छंस्वारण, १९३० ]
शुए सत्य की शोध
८४ »- शगद्देषादि से भरा मनुष्प सरूू हो सवता है वह दाचिव
सत्य भटे टी पाल ले, पर उसे হ্ত্র सत्य নী সামি নম টানা | হাত
सत्य की शोध बरने के मानी है रागद्रेपादि हन्य सै আয়া হকি সান
क्र लेना |
--दि० झा० दाब । नाग ७ , आयाए ६७, एए ३८८ । र० सर १९०८० 1
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