कार्ल मार्क्स | Karl Marx
श्रेणी : इतिहास / History, जीवनी / Biography
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15.42 MB
कुल पष्ठ :
387
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)बास्य और स्कूली जीवन ( १८१८-३५ ई० 9) ७
इसाई 'घर्मको स्वीकार करना । लेकिन; घर्म-परिवर्तनका श्रर्थ था सभी सगे-
सम्बन्धियांखि हमेशाके लिए विच्छेद, तथा अपनी छुलागत परम्परात्यों और
मात्यताओ्ोंका परित्याग । यह भावनायेँ कितनी शक्तिशाली हैं, इसे हिन्दू भ्रच्छी
तरह समझ सकते हैं, ईसाई था मुसलमान होनेपर उनकी क्या गति होती है,
इसे वह जानते हैं । यहूदी धर्म छोड़कर इसाई होनेका मतलब केवल यही नहीं
था; कि श्रच एक धर्मके सभी वन्थनोंसि आदमी मुक्त हो गया; अच वह सुश्ररकों
भी खा सकता है; और दूसरे कालातीत रीति-स्वाजोका भी पावन्द नहीं, वल्कि
इसाई होनेका मतलब था सामाजिक दासताते सुक्ति--दब वह दपने देशवादी
दूसरे ईसाइयोंकी तरह श्रपने वर्यके अनुसार स्थान पानेका श्धिकारी था |
उधर यहूदी पुरोहित वर्ग श्र समाज भी इतना जड़ था, कि धर्म-्रं थीं श्रौर
रीति-स्वाजोमें जरा भी श्रविश्वास ग्रकट करनेपर जाविव्युत कर दिया करता
था | कार्ल मा्क्सकें पिताका सम्न्रत्ध वकील होनेसे अब व्यापारियों श्रौर रब्वीके
समाजते भिन्न साधारण जर्मन समाजसे अधिक पढ़ता था । हाइनरिख मार्क्सको
यहूदी जातिंसे ्विक एशियाके गति भक्ति थी। वह एशियाके वीरतापूर्ण
इतिहास श्र उसके वीरोंको बड़ी अ्रात्मोयताकें साथ देखते थे । यह वह समय '
था; जब कि कितने ही यहूदी जर्मनीमें अपने चाप-दादोंका धर्म छोड़ इसाई
बन रहे थे । हाइनरिख हाइन ( महाकथि ); एडवर्ड गांज श्ादिने भी सामाजिक
मुक्ति तथा जन्मभूमिकी साधारण जनतामें मिल जानेके ख्यालसे इसाई धर्मंको
स्वीकार किया था | इस प्रकार १८२४ ई० में अपने वेटेकी ६ सालकी उमरमें
हाइनरिख मार्क्सका ईसाई बनना बिल्कुल नई घटना नहीं थी | राइनलैंडमें
यहूदियोंकी सूदखोरी और वनियापनके कारण लोगोंकी जो श्रपार घृणा यहूदियोंके
प्रति थी, उससे मुक्त होनेका यही सबसे श्रातान रास्ता था | कार्ल श्रमी क-स
सीखने लगा था; जब्र कि यह परिवर्तन परि्रारमें हुआ । पिता पहले हीसे
उदार विचारके थे, उसपर यह धर्म-परिवर्तन, फिर यदि मार्क्सकों घरमें यहूदी
कडरताकी गन्ध भी देखनेको न मिंली हो, तो शश्चर्य कया ? यहूदी धर्म और
उसकी कट्टरताकों तो कारलंसे घरके चापने ही विदा कर दी थी । हाइनरिखने
अपने प्रतिभाशाली पुनकों चहुतसे पत्र लिखे थे; जिनमे कहीं भी यहूदीपनकी
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