कार्ल मार्क्स | Karl Marx

Karl Marx by राहुल सांकृत्यायन - Rahul Sankrityayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बास्य और स्कूली जीवन ( १८१८-३५ ई० 9) ७ इसाई 'घर्मको स्वीकार करना । लेकिन; घर्म-परिवर्तनका श्रर्थ था सभी सगे- सम्बन्धियांखि हमेशाके लिए विच्छेद, तथा अपनी छुलागत परम्परात्यों और मात्यताओ्ोंका परित्याग । यह भावनायेँ कितनी शक्तिशाली हैं, इसे हिन्दू भ्रच्छी तरह समझ सकते हैं, ईसाई था मुसलमान होनेपर उनकी क्या गति होती है, इसे वह जानते हैं । यहूदी धर्म छोड़कर इसाई होनेका मतलब केवल यही नहीं था; कि श्रच एक धर्मके सभी वन्थनोंसि आदमी मुक्त हो गया; अच वह सुश्ररकों भी खा सकता है; और दूसरे कालातीत रीति-स्वाजोका भी पावन्द नहीं, वल्कि इसाई होनेका मतलब था सामाजिक दासताते सुक्ति--दब वह दपने देशवादी दूसरे ईसाइयोंकी तरह श्रपने वर्यके अनुसार स्थान पानेका श्धिकारी था | उधर यहूदी पुरोहित वर्ग श्र समाज भी इतना जड़ था, कि धर्म-्रं थीं श्रौर रीति-स्वाजोमें जरा भी श्रविश्वास ग्रकट करनेपर जाविव्युत कर दिया करता था | कार्ल मा्क्सकें पिताका सम्न्रत्ध वकील होनेसे अब व्यापारियों श्रौर रब्वीके समाजते भिन्न साधारण जर्मन समाजसे अधिक पढ़ता था । हाइनरिख मार्क्सको यहूदी जातिंसे ्विक एशियाके गति भक्ति थी। वह एशियाके वीरतापूर्ण इतिहास श्र उसके वीरोंको बड़ी अ्रात्मोयताकें साथ देखते थे । यह वह समय ' था; जब कि कितने ही यहूदी जर्मनीमें अपने चाप-दादोंका धर्म छोड़ इसाई बन रहे थे । हाइनरिख हाइन ( महाकथि ); एडवर्ड गांज श्ादिने भी सामाजिक मुक्ति तथा जन्मभूमिकी साधारण जनतामें मिल जानेके ख्यालसे इसाई धर्मंको स्वीकार किया था | इस प्रकार १८२४ ई० में अपने वेटेकी ६ सालकी उमरमें हाइनरिख मार्क्सका ईसाई बनना बिल्कुल नई घटना नहीं थी | राइनलैंडमें यहूदियोंकी सूदखोरी और वनियापनके कारण लोगोंकी जो श्रपार घृणा यहूदियोंके प्रति थी, उससे मुक्त होनेका यही सबसे श्रातान रास्ता था | कार्ल श्रमी क-स सीखने लगा था; जब्र कि यह परिवर्तन परि्रारमें हुआ । पिता पहले हीसे उदार विचारके थे, उसपर यह धर्म-परिवर्तन, फिर यदि मार्क्सकों घरमें यहूदी कडरताकी गन्ध भी देखनेको न मिंली हो, तो शश्चर्य कया ? यहूदी धर्म और उसकी कट्टरताकों तो कारलंसे घरके चापने ही विदा कर दी थी । हाइनरिखने अपने प्रतिभाशाली पुनकों चहुतसे पत्र लिखे थे; जिनमे कहीं भी यहूदीपनकी




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