श्री जवाहर किरणावली | Shree Jawaharlal Krishnawali

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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-- १३ = धमं संबंधी मिथ्या विचारो का निराकरण है, फिर भी वे प्रमाणभूत शा से ह्च मात्र इधर-उधर नहीं होते । उनम समन्वय करने को अदूभुत क्षमता है। चे प्रत्येक शब्दावली की आत्मा को पकड़ते हैं और इतने गहरे जाकर चिन्तन करते हैँ कि वहाँ गीता भौर जैनागम एकमेक से लगते हैं । गृहस्थजीवन को अत्यन्त विकृत देखकर कभी-कभी आचाय तिर. मिला उठते हैं और कहते हैं--'मित्रो ! जी चाहता है, र्ना का पर्दा फाद्कर सव वातं साफ-साफ कष दू! नैतिक जीवन की विशुद्धि हुए बिना धार्मिक जीवन का गठन नहीं हो सकता, पर जोग नीति की नहीं, धर्म की ही बात सुनना चाहते हैं । आचाये उनसे साफ-साफ कहते हैं-लाचारी है मित्रो ! नीति की बात तुम्हें सुननो होगी। इसके बिना धर्म की साधना नहीं हों सकती । ओर वे नीति पर इतना ही भार देते हैं, जितना धमं पर । चायं के प्रवचन ध्यानपूलंक पद्ने पर विद्वान्‌ पारक यह स्वीकार कयि बिना नहीं रह सकते कि भ्यवहायं घमं को ठेस सुन्दर, उदार ओर विद्धान्तसंगत व्याख्या करने वारे प्रतिभाशारो व्यक्ति अत्यन्त विरल হীন উ। आचायश्री अपने व्यास्येय विषय को प्रभावशालों बनाने के কিউ भोर कभो-कभी गूढ विषय को सुगम वनाने के रिष कथा का जाश्रय लेते ह । कथा कने की उनकी दरी निरा है । साधारण से साधारण कथानकः में वे जान ढाल देते हैं। उसमें जादू-सा चमत्कार आ जाता है। उन्होंने अपनो सुन्द्रतर शेछी, प्रतिभामयी भावुकता एवं विशारू अनुभव की.




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