बदनाम | Badnaam

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Badnaam by गुलशन नंदा - Gulshan Nanda

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बुदाती रहीं । फिरसिर को नवाकर मुरति को नमस्कार किया । यही क्रम काफी देर तक चलता रहा । इस तरह उन्होंने सात वार किया । मैं ध्यान से उनकी उनकी गतिविधियों की देख रहा था । मैं जानना चाहता था कि इस मूर्ति से इनका क्या संबंध हो सकता है कि इनकी मी इतनी मर्क्ति के साथ पूजा करती हैं । मुति की श्रोर मैंने गोर से देखा । उसकी चमक से तो ऐसा लगता था, मानों वह भ्राज ही तंयार की गयी हो । कला की सफाई बेजोड़ थी । मूर्ति के किसी मी म्रंग में अ्रस्वा माविकता नहीं थी। हर प्रंग, हर दशा में प्राण होने का सदेह हो जाता था । एक साथ चार मूतियों का गढ़ना कठिन-सा होता है, उस पर मी इतनी सफाई । मेरी भ्रांखें उसे हमेशा देखते रहना चाहती थीं । मैं उनकी पूजा समाप्त होने का इन्तजार करने लगा । हा तीन घंटा वाद वह वहाँ से उठकर श्रन्दर चली गई । मैंने सोबा--हो न हो, इस बुढ़िया के जीवन की कहानी लंबी तो होगी ही, साय हो दिलचस्प श्रौर करुणा मी । श्राज तक किसी मूत्ति या तस्वीर के समक्ष इतनी श्रद्धा से पूजा करते मैंने किसी को नहीं देखा या । यह एक मेरे लिए बात र्मुत वात थी, ध्राइचयं की ! ! दर हर “रब कहिये, ्राप लोग” कमरे में प्रवेश करती हुई वुढ़िया ११




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