संवाद भाग १ | Sanvaad Bhaag 1

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Sanvaad Bhaag 1  by संध्या सिंह - Sandhya Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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1. आशापूर्णा देवी (1909-1995) - आशाएरा देवी बंगाल की ही नहीं अपितु अखिल भारतीय स्तर की लेखिका के ऊप में जानी जाती हैं। उन्होंने 13 वर्ष की अवस्था से लेखन प्रारंग किया और आजीवन साहित्य रचना से जुड़ी रहीं। में तो सरस्वती की स्टेनो हूँ, उनका यह कथन उनकी रचनाशीलता का परिवायक हेै। गृहस्थ जीवन क सारे दायित्व को निभाते हुए उन्होने लगभग दो सौ किर्या लिखी, जिनमें से अनेक তিতা का भारत की लगभग सभी भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। उनकी रचना प्रथम प्रतिश्रुति पर उन्हें साहित्य के सर्वोच्च पुरस्कार ज्ञानपीठ से सम्मानित किया गया। आशापूर्णा देवी जी की कई कृतिर्य निश्चय ही कालजयी है। उनकी प्रसिवृध कृतियाँ स्वर्णनता, प्रथम ग्रतिश्रुति, प्रेम और ग्योजन, बकुलकथा; गाछे पावा नील. जल और आगुन आदि हैं। आशापूर्णा देवी की लेखनी ने नारी जीवन के विभिन्न पक्षो पारिवारिक जीवन की समस्याओं और समाज की कुंगा और लिप्सा को अत्यंत पैनेपन से उजागर किया है। उनकी कृतियों में नारी का व्यक्तिः स्वातत्रय ओर एसकी महिमा नई दीप्ति के साथ मृखरित हई है। सरल, सहज, युहावेरेदार भाषा आशापूर्णा देवी जी की रचनाओं की मुख्य विशेषता है। प्रतीकों पात्रानुकुल संवादों के अयोग ने उनकी कथा-शैत्री को जीवंत बना दिया है। प्रस्तुत आत्सकथात्मक संस्मरण मेरा बचपन में लेखिका ने अपने बचपन के विविध अनुभवों की तुलना कालांतर में परिवर्तित परिस्थितियों तथा जीवन शैली के साथ करते हुए बचपन के अभावो ओर वर्तमान




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