प्रियदर्शी अशोक | Priya Darshi Ashok
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
20 MB
कुल पष्ठ :
240
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
श्यामू संन्यासी - Shyamu Sainasi
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)काश्मीर का प्रदेशिक : : : १७
पाठलिपुत्र में इस प्रादेशिक का नाम विरोध-भाव से ही लिया जाता था 1जब
सारा देश महाराज अ्रशोक की शान्ति और अहिंसा की नीति का समथंक था,
धर्म पर आचरण करता था, यह प्रदेशपति उस नीति को सन्देह की दृष्टि से
देखता और विदेशियों से सशंकित रहता था |
महाराज अशोक ने अपनी नयी मानवतावादी प्रेम-नीति से पारस्परिक
मयोँ श्रौर सन्देहो को लगभग निमूंल कर दिया था । युद्ध ग्रौर कठोरता को
लोग पशुता समभने लगे थे | राजकाज हो या व्यक्तिगत, पारिवारिक व्यवहार
सवत्र प्रेम और मधुरता का आचरण किया जाने लगा था। लोग वृक,
वनस्पति और पशुओं को भी स्वजन की भाँति समभने और स्नेह करने लगे
थे | मानव-कल्याण की अनेक योजनाएँ कार्यान्वित की जा रही थीं। पुरुष-
पुर से ताम्रलिप्ति तक जो भी पथिक यात्रा करता उसे माग में कहीं कष्ट ন
होता; राजपथ वृक्षों की छाया से ढके हुए थे, स्थान-स्थान पर पान्थशालाएँ,
जलाशय और चिकित्सालय बना दिये गये थे | महाराज अशोक के ऐसे
मानवतावादी और लोक-प्रेम से मरे हुए. विचारों में काश्मीर के प्रादेशिक की
संशय-नीति विसंवादी स्वर की भाँति ककश प्रतीत होती थी।
लोग कहने लगे थे कि काश्मीर का प्रादेशिक धम-घोषणाश्रं के स्थान
पर युद्ध-घोषणाएँ करता है, जो श्रनुचित है, निर्धारित नीति के प्रतिकूल हे ।
यद्यपि यह बात भी सत्य थी कि उसकी वौरता और दृढ़ता के कारण किसी
विदेशी आक्रान्त को महाराज अशोक के उत्तर-पश्चिमी सीमान्त परश्माक्रमणु
करने का साहस नहीं होता था। दो-एक ने साहस किया भी तो इस प्रादेशिक:
के कारण उन्हें मेँह की खानी पड़ी | परन्तु उसकी इस नीति के कारण
महाराज अशोक की शान्ति नीति को, जो भारत के बाहर विदेशों मे भां प्रसारित
हो रही थी, बड़ी क्षति पर्ुचती थी । यान, मिख श्रोर मकदूनिया मे कहा जने
लगा था कि महाराज अशोक अपने ही प्रदेश मे धमनीति का सफलतासे
प्रयोग नहीं कर पाते और उनके प्रचारक यहाँ श्राकर शान्तिको डीगे
हाँकते हैं !
उस प्रादेशिक को अपने सामने अकेला, बिना संगी-साथी और सैनिकों
के, नितान्त अ्रकेला खड़ा देखकर द्वारपाल को बड़ा आश्चय हुआ । वह
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