तुलनात्मक भाषा तत्त्व शास्त्र | Tulnatmak Bhasha Tatva Shashtra
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
पारसनाथ द्विवेदी - Parasnath Dwivedi,
राधेश्याम शर्मा - Radheshyam Sharma,
सेतीलाल राठौर - Setilal Rathaur
राधेश्याम शर्मा - Radheshyam Sharma,
सेतीलाल राठौर - Setilal Rathaur
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17 MB
कुल पष्ठ :
350
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
पारसनाथ द्विवेदी - Parasnath Dwivedi
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राधेश्याम शर्मा - Radheshyam Sharma
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सेतीलाल राठौर - Setilal Rathaur
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)1 হু?
भाधा विज्ञान के विधेचन से स्पष्ट होता है कि प्रारम्भ में कोई एक
मूल भाषा थी जिसकी आये जाति के लोन व्यनहार में लाते थे ) भाषा की
खोज के लिये दमक्ों पूरातल्वश्ञास्त्र, भूगर्भ विद्या, भूगोल और मानवर- ज्ञान को
भी झाश्षय लेना पड़ता हैं। भापामूलक खोज प्राचीनतम झब्दों के श्राधार पर
ही हो सकती है। उन शब्दों को नाम, प्रकृति, क्रिया, सामाजिक शब्द आदि
तेर्गों में बांदा जा सकता है। इन शब्दों को आवार पर ही उस काल के
निवासियों भ्रौर उत्तकी जातियों का पता लगता है। इस भरकर समी प्रायं
भाषाओं की मूलभत समानता अमिवार्य रूप से उनके एक ही परवेज भाषा
से उद्युत हुये होते के तथ्य को स्वार बरसे के लिये प्रेरित करती है ।
किसी भी भाषा का अस्तित्व इस बात का साक्षी है कि उस्ते बोलने वाले लोग
भी হার | সন: यहे निष्कर्ष निकलता है कि सभी श्राव-राष्ट् वसी पृक
ही खोत से उन्पत्त हुये है, यथप्रि इसके बाद के समय में इनमें विदेशी तत्व
वा सम्मावेज्ञ होता भी असम्भव नहीं है। शतः हम पर्याप्त निश्चिस्तता के
साथ यह् निष्कर्ष निकाल सकते है कि एक प्रार्यतिहासिक काल में एक ऐसी
भाये-जाति का अ्रितित्तव रहा होगा जो मूलतः समस्त विदेशी अन्तामश्षरर्यी से
मुक्त तथा इतनी पर्याप्त जनसेंस्या में विद्यमान रही होंगी कि उसी के गर्भ
से सब जातियाँ समय-समय पर फुट कर प्रकट ही सकी होंगी । उस पूल
शाये-जाति को प्रकृति ने प्रचुर मात्रा में बह प्रतिभा भी प्रदान की होगी जिममे
वह सम्भवत: सभी भाषाओं में श्रप्ठ, अ्रपन्नी एक भाषा का भी सृजन करन
में सफल हो सकी । यद्यपि बह मल ब्रार्थ जाति किसी भी परम्परा को अज्ञात है,
तथा। भाषा विज्ञान द्वारा देसे उसके अस्तित्व का पर्योप्त अंशों तक प्रमार
मिलता है । मूलतः यहू আসায় जातियां एक ही स्थान या देश थे मिवास कर्ती
थीं, घीरेकोरे वे एक दूसरे से अ्रनग होती हुई उस मूल स्थान से विभिन प्रदेशो
मं चनी मु । इन आर्य जातियों का मूल स्थान क्या था इस सम्बन्ध म विभिन्न
मत्त हैं। सर्वध्रधम यहाँ हम प्रो जेर म्पुर के আনল মক্কার टिनेस्ट
0० व ४७ { वदद पफ त, शिक्षा, के प्राघारः पर् इस्
जाति के मूल निवास पर विचार करते हुए विभिन्न प्रतीच्य चिद्रानोकेभौ
विचार प्रकट करेंगे )
(१) इस মন को कि झ्राय लोग विदेशी थे श्रौर उन्होंने भारत को श्राक्मण
करके विजिस लिया तथा यहा के तथाकथित आदिवासियों पु अपप घर्म तथः
गपनी संस्यषाओं को बलातू लाद दिया, कजेद ने यह कहकर भ्रस्त्रीकृत कर दिय
दै किः यह प्रस्यस्त श्रवयप्ति लथ्यों पर भ्राधारित है और इसको पुष्ट ऋरने के लि
कोई रपट तातियासिक प्रमाण भा उपलब्ध नहीं दै ।
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