अर्चना और आलोक | Archana Aur Alok  

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Archana Aur Alok   by कमला जैन - Kamala Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अन्तह ष्ट की दोघंता [३ छ6 019 ए०006 लाल्शा 20010106211), ৪100 [10ए9 [115 ० 8 एफ £191 770 6৮1] ০9010907062 1০ &००त्‌ 0, लाला क [टि गा {फ 0९211 * -- सुकरात मृत्यु के वारे मे सदैव प्रसन्न रहो भौर इसे सत्य समझो कि भले आदमी पर जीवन मे या मृत्यु के पश्चात्‌ कोई बुराई नही आ सकती । मनुप्य का शरीर मर जाता है, क््तु उसके सद्गुण नही मरते । जिस व्यक्ति ने जीवन मे अपने सुकर्मों से पुन पुन होने वलि मरण से वचने का प्रयत्न किया है और पृर्वकृत कमं-बन्धनो से अपनी आत्मा को मुक्त प्राय कर लिया है उस व्यक्ति के लिये मृत्यु का कोई भय नही रह जाता है । कवि किसनदास जी ने कहा है--पूर्वोपार्जित पुण्य कर्मों के परिणाम स्वरूप मनुष्य, मनुष्य जन्म पाता हे, किन्तु जो इस जन्म मे पूवंजन्म के पुष्य उपाजन नटी करता वह महाअज्ञानी है। वे इसोलिये मानव को चेतावनी देते हैं .--- मौसम समे 'किसन! कीजिये असम अम, बँठे ऋम-क्रम पूंजी गाँठ की न खाइये । काल-काल करत परत आवे काल पास, काल को न आस कुछ आज ही बनाइये । फाया में न आई काई तो लो करिले कमाई, आग लगे मेरे भाई पानी कहां पाद्ये 1 सोघी ओर सरल भाषा में दी गई कवि की सीख अमूल्य है । मानग्-जन्म ऐसा ही सुनहरा अवसर है, जवकि मनुष्य सिफं पृण्योपार्जन ही नही, वरन्‌ चाहे तो पाप-पुष्य से भी ऊपर उठते हुए जन्म और मरण के चक्र से छूट सकता है । कन्तु प्रमादवश ओर म्गेगोमे आसक्त रहने के कारण वह घमं-मय सुकृत्या को आने वाले वल पर टालता जाता है । ऐसे व्यक्ति को ही कवि ने चेताया है कि वल-कल करते हुए रूमय बीत जाएगा और काल आ घेरेगा। अत जो कुछ कर सके । आज ही क्यो नही कर लेता? जव तक शरीर मे बल है, इन्द्रियो मे शक्ति है तमी तक तू इसमे चमं-कृत्य कर सकता है-- शरोरमाद्य खलु घर्मं-साधनम्‌ । सभी धमं कर्मो के लिये शरीर ही सवसे पहला साधन है । अगर इसे पाकर व्यर्थं खो दिया, इसकी अनुपम्‌ गक्ति का सदुपयोग नही किया तो अन्त समय में पर्चात्ताप के सिवाय और कोड उपाय नही रह जाएगा । जिस प्रकार घर मे आग लग जाने के वाद पानी के लिये दोडना




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