आनंदघन ग्रंथावली | Anandghan Granthavali

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : आनंदघन ग्रंथावली  - Anandghan Granthavali

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about महताब चन्द्र खारैड - Mahatab Chandra Kharaid

Add Infomation AboutMahatab Chandra Kharaid

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
( ६ ) नही है वत्कि झाठो जन्मो से बने हुये सबध को अथ्ुण्ण बनाये रखने व पणं झात्म समर्पण का अद्भुत एवं चेजोड चणन है । सच्ची साध्वी सनी का कार्य पति मे दोष निकालना नही है विल्तु पति के पद- चिहद्धों पर चलकर आत्म समपंण है । पति जिस मार्ग जावे उसी मार्ग का अनुसरण पत्नी के लिये श्रे य- स्‍्कर है। राजिमती ने यही किया और रवामी से पूर्व ही भव-यथनो को तोड डाला और मोक्ष मे पति का स्वागतं करने के तिये पहिले ही पह च गई । कवि का इस प्रकार का वर्णन इसी बात का द्योतक है। आात्मोत्काति की भूमिका में जो वात प्रथम स्तवन म--“फपट रहित वरं भ्रातम शररपरा रे न्रानदघन पदं रेह कही है उदी कौ परम पुष्टि इत स्तवन मे इस प्रकार की है--“सेवकपण ते आदरे रे, तो रहे सेवक माम । आशय माये লালিব ২, ब्रेहिज स्ठो काम 1” इससे वढकर कौन सा आत्म समर्पण होगा ? कौन सा त्याग होगा ? कौन सा योग होगा? ससार से मृक्त करानेवाला व्यापार ही तो, समर्पण, त्याग और योग है । ऐसे उच्चाशय वाले स्तवन पर श्री कापडिया जी का शका करना निरा- घार ही कहा जा सकता है । ऊपर के विचार श्री कापडियाजी के चौवीसी तथा वावीसवे स्तवन के लिये उठाई गर शका के सम्बन्ध मे हं । श्रव श्री श्रानदघनजी की रचना-पदा- चली के एक अन्य सपादक व विवेचऊ ्राचार्य श्री बुद्धिमागर सूरिजी के विचार दिये जाते है । आ्राचार्य श्री का कथन है--“्रन्य दर्शनीय विद्वानों का कथन हे कि प्रथम सगुण को उपासना-स्तुति की जाती है, तत्पश्चात श्राध्यात्म ज्ञान मे गहरे षैठने के पश्चाद निगुण की उपासना-भक्ति की ओर भ्रग्रसर होना पडता है । यद्यपि इस प्रकार की शैली जैन विद्वानों मे दिखाई नही देती है तथापि इस वात को माना जावे तो आनदधनजी ने गुजराती भाषा मे चौयीसी की रचना की, फिर मारवाड मे धमते हये लोगो के उपकाराथं श्रजभाषा मे पदो की स्वना की ।” आगे वे लिखते ह-“एक दत कथा सुनने मे आती है कि एक समय श्री आनदघनजी शत्रु जय पर्वत पर जिन दर्शन करने गये हुये थे । उन्ही दिनो श्री यशोविजयजी और श्री ज्ञानविमलसूरिजी श्री आनदघनजी से मिलने के लिये शत्रु जब पर गये थे। श्री आनदघनजी एक जिन मदिर मे प्रभु की स्तवना কস




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now