कविरत्न 'मीर' | Kaviratna Meer
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7.19 MB
कुल पष्ठ :
300
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)बेहोश लहरों में--
नहीं जानता कि दुनिया में कहीं मदिरा की कोई स्रोतस्विनी
है या नहीं, पर एक दिन अनायास हो आँखें मूदकर देखा था
कि हृदय की हल्की नसों के बीच अधरों तक छुलकता हुआ एक
'याला हँस रहा है ! मेरे होश उड़ गये-इधर-उधर देखा, कोई
नहीं था । काँपते हाथों से उसे उठाया, पीने की इच्छा नहीं थी;
पर ओठों ने “अपनी चीज़' देखकर जबरदस्ती चूस ही लिया !
आंखे शुक गई; दिल पानी बनकर बह गया !
वह प्याले की पहली साँस थी जिसने मेरे कलेजे में जीवन
का सारा पराग बिखेर दिया । कुछ -लड़कपन का कुतूहल था, कुछ
यौवन की उमंगें थीं । प्रललोभन ने करवट ली; उत्कंठा ने ठेस -
मारकर उसे जगा दिया । आँखें मूँदकर; दिल की सारी बेकली
के बल पर; मधुपात्र की वह हँसी अपनी दुनिया में छुटाने लगा ।
तबसे आज तक कितने दिन: कितनी रातें बीत गई, वह खाली
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