कैराल सिंह | Kairal Singh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
258
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about का माधव पणिकर -ka madhav panikar
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)7
श्रकेली ही तो है अम्पु यजमान तो सदा उनके साथ बने नही रहते
यवती---क्षमा करो भैया, में अपने इस समयके दु खके कारण ही
ऐसा कह गई तुमने जो कहा वही ठीक है तम्पुरान हैँ तभी हम हूँ तुम
मुझे मामाके पास पहुँचाकर तम्पुरानकी सेवामे चले जाना
पथिक--तुम दोनो राजी हो गए, श्रव तुमको श्रम्पु नायरके पास
ण्हुँचानेकी जिम्मेदारी मेने ली श्रव समय अधिक हो चला हैँ थकान मिट
गई हो तो झव देरी नहीं करनी चाहिए तुम लोगोको कहाँ जाना है?
यवकने कहा--हमारे मामा चद्धोत्तु” प्रभुके एक प्रवन्यक ই जाने-
के लिए श्रव कोई श्रीर् न्थान न होनेके कारण दीदीको वही पहुचानेका
विचार दिया है
“चलो, मेरा रास्ता भी वही है झाजकी रात वही विता तेगे, नम्पि-
यारसे | मिलना भी है अच्छा तो चले ” पथिकने कहा श्रीर वह सबको
साथ लेकर चल पडा
अव कम्मू और उसकी वहनकी चालमे पहलेकी-सी श्रमहाय दीनता
नहीं थी युवकका हृदब पयण्णि[ राजाके प्रताप श्रौर सामथ्यंकों सोच-
सोचकर प्रफूल्लित हो रहा था केरलकी स्वतत्रताके लिए सर्वस्वे त्याग
करके, सब प्रकारके क्लेमोको अ्रगीकार करके जीवन-भर यद्ध करनेवाले
वीर पुरुपषके नामके म्मरण-मत्रसे ही उसका हृदय श्राह्वादसे भर
उठता था उनका नेतृत्व स्वीकार करके, उन्हें ईब्वरके समान
आराध्य मानकर उनवी छत्र-छायामे लडनेवाले वीर-केसरियोको एक-
एवं राजाकी पत्नीकों केट्टिलम्मा' श्रथवा राज-पत्नी' कहा जाता था
टावनकोरमे श्रम्मच्ि' (ग्रम्माजी) कहा जाता था अवशिष्ट राज-
वयोमे ये प्रयाएँ श्राज भी जारी है
~पानूर प्रदेयके एक मुख्य सामन्त प्रभू-सामन्त, लाड
† राजाकी दी हुई एक पदवी, वग-परपरासे चलनेवाला उपनाम
{ पपच्यि नामक स्थान मे रहनेवाते राजा इस ग्रथके नायकके
লিঘ নিন रूपमे प्रयुक्त नाम--पपदिदाराजा
User Reviews
No Reviews | Add Yours...