विश्व की कहानी ४ | Vishw Ki Kahani 4

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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| (' 01 लंबी और श्रुवों के पास को रश्मियाँ छोटी होती हैं| अधिक अमी तक यह नहीं जान पाये हैं कि इतना सृत्तम होते हुए आकाश को बातें तक प्रायः एक-सी बनी रहती हैं। सौर वायु-मंडल में ये बादल के समान जान पड़ती होंगी | अ्रन्य ज्वालाएँ 'उद्‌- गारी ज्वालाएँ? कहलाती हैं ओर ये कलंकों के आस-पास से उठती हैं | शांत ज्वालाओं की अपेत्ञा ये बहुत अधिक बचमकीली होती हैं और बढ़े वेग से ऊपर उठती हैं | कभी- कभी ये इतने वेग से उठती हैं कि घंटे-डेढ घंटे पाँच लाख मील ऊपर चली जाती हैं वर्णमंडल के बाहर यूय का कॉरोना या मुकुट है। यह अनियमित आकार का होता है ओर सूर्य के प्रकाश- मंडल से बीस-पच्चीस लाख मील ऊपर तक फेला हुआ देखा गया है बराबर सव-्ग्रहणों के नियम फ़ोटोग्राफ़ लेते रहने इतना पता लगा है कि कॉरोना का स्वरूप भी ११ वर्षीय सू्य-कलंक-चक्र के साथ व्रदलता रहता हे | कम कलक समय में सूर्य की मध्य रेखा के पास कॉरोना की रश्मियाँ कलंक के समय कॉरोना का आकार प्रायः गोल रहता है । ग्रभी तक पता नहीं चल सका है कि क्‍यों ऐसा होता है | कॉरोना का घनत्व अति सूचरम होगा | १८४३ में एक पुच्छुल-तारा कॉरोना को चीरता हुआ निकल गया | पुच्छल-तारे का वेग उस समय ३५० मील प्रति सेकेंड था। इतने प्रचंड वेग से चलने पर भी कॉसेना के कारण पुच्छुल-तारे को न कुछ रुकावट मालूम हुई ओर न उसको कोई चति ही पहुंची। एक प्रसिद्ध वेज्ञानिक का अनुमान है कि कॉरोना का घनत्व इतना कम है कि प्रसेक पंद्रह धन गज्ञ मं केवल एक सृद्धम कणु होगा | वैजानिक भी कॉरेना क्रिस प्रकार इतना अधिक चमक रुकता है। सब-ग्दण में बशुमंडल और कॉरोना से लगभग सप्तमी की चाँदनी इतना प्रकाश आता है अभी तक कॉरोना का फ़ोणेग्राफ़ केवल सर्व सूर्यग्रहण के समय ही खींचा जा सकता था, परन्तु हाल में ( मई १६३६९ में ) प्राफ़ेसर बरनड लॉयट ने एक भाषणा दिया है, जिसमें बिना भ्रददण के ही कॉयरोना का फ़ो्ेग्राफ़ लेने द पिक-इ-माइदी वेधशाला प ` यह वेधशाला पिनीज प्वतमात्ना कै एक दिणच्छष्धित श्रम ` (1 7 पर स्थापित है। यहाँ का वायुमण्डल इतना खच्छ है कि यहाँ से बिना ग्रदण के ही सूर्य के बॉरोना का फ़ोटो खींचा जा रूदा है ( सबसे 3पर ) पिक-दु-माःदी शिरूर वा दृश्य । यहाँ से चढ़ाई शुरू होती हैं । एक ज्योतिषी दल ऊपर शिखर बी ओर जा रहा (बीच में ) लगभग ६००० एफ রর সি




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