वेद - रहस्य खंड 2 | Vaid Rahasya Khand-2

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बैद-रहस्य उत शुवन्तु नो निदो निरन्यतरिचिदारत । दधाना इद्ध इदु दुव पथ (उत निद न युवस्तु) और हमारे अवरोधक* भी हमें बहें कि “नहीं, (इ्दरे इत्‌ दुव दधाना ) ईस्ट में अपनी शियादीलता बो निहित करते हुए तुम (अन्पत चघितु नि क्षारत) यत्य क्षेत्रो में भो निकल- कर आगे बढ़ते जाओ” ॥५॥। उत न' सुभयाँ अरिवंचियुर्दस्म छृप्टय । स्पामेदिद्रस्य शर्मणि ॥६॥ (उत) और (दस्म) हे कार्यसाधव ' (अरि') योद्धा (फृष्टय ) परम के कता (न. सुभगान्‌ वोचेयु ) हमें परूण सौभाग्यशाली कहें, (इग्द्स्य शार्मणि इतु स्याम) हम इन्द्र को शाति में हो रहें ६0 एमाशुमादावे भर यज्तथिय नुमादनमु । पतपन्मन्दयरसखम्‌ ॥७॥। *या नित्दक, 'निद' । “नि धातु, मेरा विचार हैँ, वेद में बधन, घेरा, सीमा ये' अर्थ में आयी है, और इसके ये अर्य होते हैं पह बात प्रण निदचयात्मकता के साथ भापाविश्ञान हारा भी प्रमाणित को जा सकती है। निदित', निदान शब्दों का भी, जिनका अ्थे क्रमश, घद्ध और बधनरज्जु है; भाधार यही धातु हैं। पर साथ ही इस घातु का अर्थ निम्दा करना भी है। गुह्मा कयन की इस अद्भुत दौलो के अनुसार विभिन्न सदमभों में कहों एक अर्य भ्रधाएभूत होकर रहता है कहीं दूसरा, पर कहीं भी एक अर्थ दूसरे अर्थ का पूर्ण यहिप्कार नहीं कर रहा होता। 1अरि कृप्टय' का अनुवाद “आर्य लोग” या “रणप्रिय जातिया मी हो सकता है! 'कृष्टि' और “चपणि' जिनका अर्थ सायण में “मनुष्य” किया हैं, वने हैं 'कुप' तथा “चर्ष' घातु से जिनका मूलत अथ होता हैं “किम, प्रयहा या श्रमसाध्य कम । इन दाब्दों का यर्थ कही दीं 'बेदिक कमें का कर्ता' और वहों स्वय 'कर्म' भी हो जाता है। श्ध




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