जैन धर्म प्रवेशिका भाग 1 | Jain Dharm Prabishika Bhag 1

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Book Image : जैन धर्म प्रवेशिका भाग 1  - Jain Dharm Prabishika Bhag 1

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ ८ ] डाल देता है, पानी अपने स्वभाव से ऐसा स्वच्छ ओर साफ है कि उसमें पड़ी हुई सब चीज़ साफ नज़र आती है परन्तु मिट्टी वा अन्य किसी वस्तु के मिलने से वह ही पानी बिल्कुल मेला ओर गदला हे जाता है, इसही प्रकार जीव का भी असली स्वभाव ज्ञान ओर आनन्द है, जीवों में संसार की सब ही वस्तुओं ओर उनके सब ही प्रकार के गुण और पर्यायों को पूर्ण रूप से जानने की शक्ति है, पूर्ण शान्ति के साथ अपने ज्ञानानन्द में मप्न रहना ही जीव का असली स्वभाव है, जीवों को अपने इस परम ज्ञान के वास्ते नतो आंख नाक आदि इन्द्रियों की ही ज़रूरत है ओर न शरीर की, न आंख को ऐनक लगाने की ओर न दूर की चीज़ के देखने के वास्ते दृरवीन की, वह तो अपनी जीवा- त्मा की शक्ति से ही सब कुछ जान सक्ते हैं ओर बिना किसी प्रकार की वस्तु के अकेले अपने ही आत्प स्वरूप में मग्न रद सक्ते हैं परन्तु अनादि काल से संसार के सब ही जीव शरीर रूपी क़ैदखाने में क्ेद रहते चले आरहे हैं कभी कोई शरीर धारण करते हैं ओर कभी कोई, परन्तु शरीर के बिदून कभी नहीं रहते हैं, अनादि काल से ही इनका ज्ञान गुण गदला हो रहा है ओर बिना आंख नाक आदि इन्द्रियों के कुछ भी नहीं सूकता हे, जीव का असली स्व- भाव बिगड़ कर उसमे विभाव भाव पैदा ह रहा रै जिससे




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