नाटक, चित्रपट और समाज | Natak, Chitrapat Aur Samaj
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
50
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)नाट्य पृष्ठभूमि ` +
्रकमभुल : अंक के श्न्त में प्रविष्ट किसी पात्र द्वारा विच्छिन्न अंक की भागे
श्राने वाली.कथा का सूचक |
विपकम्भक : अंक आदि में रहकर यह धूत एवं भविष्यत् कथा की सूचना
देता है। ऐसा इसलिए किया जाता है कि कथा को संक्षिप्त किया जा सके । रसाद्व के
में किसी भी प्रकार की बाघा न पेड़ने देने के लिए निषिद्ध विषयों का বানি ली री
में ग्रभिनय करने वाले पातर दारा कराया जाता है, जो कि निम्नं श्रथवा मस्यम च्व से
' संबंध रखता है । चन्द्रावली नाटक का प्रथम अंक इसका उदाहरण है ।
वर्तमान नाटकों में तो केवल अंकों एवं दृष्यों का विभाजन किया जाता है।
किन्तु फिर भी कलात्मक पक्ष पर विचार करने से पूर्व इनकी जानकारी का यहाँ दिया
जानी आवश्यक है ।
तांटक और उसके पात्र इसमें
पार: नाटक का दूसरा तत्व, जो कि अ्रधिक महत्वपूर्ण ५४५ क पात्रों
¦ नायक, विरोधी, (खलनायक), सहायक पावर शादि सभौ श्रा जाते ६ । नाटक
में नांरी पात्र भी होते हैं ।
` संस्कृत की নী घातु से उत्पन्न द्द पतायक' অনসঘান पात्र के त
होता दै ! नी का श्रं है ले जाना । नायक श्रपने अन्य सहायका के सहयोग
की ओर उन्मुख होता है तथा उसकी प्राप्ति करता ই। फलप्राप्ति कष 1 है। श्रतः
उसी को प्राप्त होता है! नायक को फल प्राप्त करने का अधिकार হর
उसे अधिकारी' भी कहा जाता है 1 नायको कौ भी कर
` गुणों तथा शक्तिसम्पन्नता रादि के श्राधार पर आगे चलकर নীরা
वर्गो में वाटा जाता है, जो निम्नलिखित है--
(ক্স) धीरोदात्त)
(भ्रा) धीरोद्धत 1
(হু) धीर ललित 1
(ই) धीर प्रगान्त । ॥
अत्येक व्गे के सायकों की भी चार श्रेणियां होती हैँ:
(१) दक्षिण 1
. -(२) धृष्ट ।
` (३) शठ ।
(४) श्रनकलं ।
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