निराला की काव्य - साधना | Nirala Ki Kavya Sadhna

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Nirala Ki Kavya Sadhna by वीणा शर्मा - Veena Sharma

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about वीणा शर्मा - Veena Sharma

Add Infomation AboutVeena Sharma

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
६ লিহালা দটী काव्य-सा्धना बना दिया था जब भी उन्हें कहीं से कुछ प्रयप्राष्ति होती थी तो या तो वे उसे किसी दीन-द्खित को दे देते थे अन्यथा বিধি যক্ষা में व्यय कर देते थे । घायल की गति घायल ही जानता है, निराला स्वयं जीवन में अनेक दुः व श्राया सहन क कपर अत्यधिक संवेदनगील हो यये थे; जहाँ भी वे किसी पीड़ित व्यवित को देखते थे उसकी येन-केन प्रकरेण अ्धिकाधिक सहायता करने का प्रयास करते थे-। इंशी कारण उन्हें 'औघड़दानी व महाभारत का कर्ण! आदि विशेषजों से विभूषित किया गया । इस प्रसंग में निराला की उदारता से संबंधित दो-एक घटनाएँ उल्लेखनीय हैं । एक वार उत्तरप्रदेश की सरकार ने उनकी एक पुस्तक पर २६०० झुपये का परस्कार दिया । निराजाजी ने इन रुपयों को न देखा, न एक वार छुपा, टूर से ही दान कर दिया-एक स्वर्गीय साहित्यिक मित्र की विधवा पत्नी को पचास रुपये मास्तिक के हिसाव से मिलते रहेंगे क्योंकि उत्त स्वर्गीय मित्र से निराला जा ने सिर्फ २१) उधार लिये थे शसी प्रकार एक बार विकट झाथिक संकट की स्थिति में जब उन्होंने कई दिनों से भोजन नही किया था, उन्हें एक प्रकाशक से १०४) प्राप्त हुए, लेकिन मार्ग में हो उन्होंने एक भिखारिणी की भिक्षावृत्ति को समाप्त करने के लिए दे डाले 1 यहाँ तक कि तगि वाले की देले के लिए भी उनके पास पैसे नहीं बचे ।* निराला के व्यक्तित्व पर सर्वाधिक प्रभाव समन्वय के सम्पादन-कालमें विवेकानन्द व स्वामी रामकछृप्णु परमहंस के दिचारों का पड़ा । स्वामी विवेकानन्द के वेदान्त के दोनो भूल त्तत््वों-शवित-साधना व करुणा का निराला पर प्रभूत प्रभाव पड़ा । यही कारण है कि एक ओर वे वज्थादपि कठोर थे, दूसरी ओर कुसुमादपि. भृढु । उनके व्यवितत्व में पोरुप तथा करुणा, दोनों तत्व एक साथ पाये जाते हैं। “जिस ऐतिहासिक बोध, जातीय-विशेषता और हिन्दुत्व का उद्घोष युग-प्रवर्तक विवेकानन्द ने किया उसकी प्रतिध्वति, मलष्चनि बनकर निराला के 'शिवाजी के पन्न , जागो फिर एक वार', 'दिल्ली', 'यमुना' आदि कविताओं में मिलती है ।'' निराला स्वयं अपने में व स्वामी विवेकानन्द में अत्यधिक साम्य का श्रनुभव करते थे। उनका कहता था कि. “जब में इस प्रकार बोलता हूं, तो यहू मत समझो कि निराला वोल रहा है। तब समझो, मेरे भीतर से चिदेकानम्द बोल. रहै ह ।.यह तो तुम ५००० ही हो कि मैंने स्वामी विवेकानन्द जीका सारा. वकं हजम .कर लिया है ।' १. भद्ाकवि निराला अमिनन्दन अंध, पृ० ५१ २, महाकवि निराला 'अभिनन्दन अन्य, पू० ४८-५६ ३. प्रो° ध्जय वसौ, निराला : कान्य श्रौर व्यचितत्व, १० ५२ ४. महाकवि निराला थमिनन्दन अन्यः १० ११४ संस्मरण ३७




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now