रूपमती | Roopmati

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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९ हैं और इसी के प्राधार पर विभिन्न रागं के समय निदिचत किये हैः यही का है कि हर राग एक निश्चित समय पर मन में विशेष भावनायें जागृत करता प्रौर इसी का नाम है राग का प्रभाव**“इस विशेष राग के सुर उसी ध्वनि प्राथ मिलते हैं जो उस समय इन सात ग्रहों की गति से उत्पन्न होती है ।'/ रूपा---“ठीक है, समझ गई, परन्तु यह वात श्रव तक बुद्धिम नहीं बैर इन सात ग्रहों की ध्वनियाँ सुनी कैसे गई ।” चाचा-- “तुमने वड़ा उचित प्रन किया है“ सुनो ! संगीत श्रौर ज्योति देसी विद्याय हैं कि आरम्भ मे उन्हे समभनातो एक श्रोर, साधारणा बृद्धि माति उनके शब्दों के प्रथं तक को नही पटटैव पाते । । यह वह विशेष ज्ञान; जनकी नींव स्वयं देवताग्रों नै रखी है ` ्रवतारों ग्रौर पैगरम्बसों ने इन्हें परवान ढ़ाया है और वह भगवान की दी हुई असाधारण शक्तियों के स्वामी थे * न ध्वनियों को सुन सकते थे । वैसे यह तकं भी दिया जा सकता है किं श्राकाः ण्डिल को प्रकृति ने वारह राशियों में विभाजित किया है और जैसे दुनियाँ वालं इन्हीं राशियों की संख्या के आवार पर वर्ष को बारह मासों में बाँटकर धरतं ९ समय को निश्चित किया है और ऋतुओं के अदल-बदल के समय निर्धारित ये हैं ऐसे ही इन सात-ग्रहों की परिक्रमा की अवधि के अनुपात से इनकी गरि 1 अनुमान लगाया गया है और इनकी क्रिया से उत्पन्न होने वाली ध्वनियों का व ज्ञान हुआ है, परन्तु इस विषय में मेरा अपना विश्वास वही है जो में पहले ता चुका हूँ और इसी को मैं सत्य मानता हूँ ।” अभी यह वातचीत चल ही रही थी कि चाची भीतर से गरजती हुई निकली र चाचा: पर वरस पड़ी, “मैं कहती हूँ, तुम पागल हो जाओगे । आकाश की तं छोडकर कभी धरती की बात॑ भी किया करो*''बस सदा एक ही भक-फक, प्री दुनियाँ का कोई काम करना न जाना । चाचा, दस साथे चाची का मँँह ताकने लगा और रूपा गर्दन घुमाकर हंसी [ रोकते हुए साड़ी का आँचल मुंह में टसकर वैठकर गई। चाची लगातार कहे [रही थी, “ए, मै कहती हँ इधर को क्या ताक रहे हो ? उठो, चौधरी के पातत झो, आज कौ दिन की बात हो गई। उसने नगर चलने को कहा था पर




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