भारतीय प्रेमाख्यान काव्य | Bhartiya Premakhyan Kavya
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
281
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( २०५ )
संसार की प्रत्येक वस्छु का अस्तित्व ही निर्मू हो जाता है, यद्दी कारण है कि
सूरसेन को कुछ भी नहीं माता था।
ध्न छोर न माया न चिता न चैनं नसुद्धं नद्धं नविया न बेन ॥
न चाल॑ न ख्याल न खान॑ न पान॑ न चेत॑ न हेतं न अस्नानं न दानं ॥
कहने का तालय॑ यह है कि हमे पुहुकर के वियोग में कलापक्ष और
हृदयपक्ष दोनों का सामंजश्य दिखाई पडता है 1
भाषा
रसरतन की मापा चलती हुई अवधी है किन्तु कहीं कही संस्कृत के तत्सम
शब्दों के पुट से वह बहुत परिमार्नित हो गई है | जैसें--
“सगुण रूप निगुंण निरूप वहु गुन विस्तारन।
अविनासी अबगत अनादि अघ अटक निवारन 1
घट-घट प्रगठ सिद्ध गुप्त निरलेख निरक्षन॥?
सेना के संचालन एवं युद्ध के वर्णन में कविंने भाषा में डिंगल का पुट
देकर उस्ते ओजसिनी बना दिया दै!
“पय पताल उच्छलिय रेन अम्बर है हश्चिय।
दिग-दरिग्गज थरहरिय दिव दिनकर रथ खिधिय 1
फल-फनिन्द् फरदरिय सप्र सदर जट सुक्खिय 1
दंत पंति गज पूरि चूरि पव्वय पिसांन किय॥?
अनुखारान्त भाषा लिखने की परिपादी को भी कवि ने अपनाया है।
“जमा देवां दिवानाथ सूरं। महां तेज सोम तिहूँ छोक रूप॑॥
उदे जासु दीसं प्रदीसं प्रकासं | हियो कोक सोंक বস জন্তু না ||
छ्न्द्
इस काव्य का प्रणयन दोहा भौर चोपा की शैली मे हुआ है किन्तु इस
छन्द् के अतिरिक्त छपय, सोमक्राति, घटक साखूल, न्नोगक, पद्धरि, भुजड्ी,
सोरठा, कवित्त, मोतीदाम, माल्ती, भुजड्ड प्रयाव, प्रनिका, डुमिठा और सवैया
छन्दो का प्रयोग भी बहुतायत से किया गया है।
अलङ्कार
इस कवि ने उपमा, उद्पेक्षा और अतिशयोक्ति अल्ड्रार ही अधिक
प्रयुक्त किए हैं।
लोकपक्ष
जहाँ हमें इस काव्य में संयोग वियोग की नाना दक्शाओं का चित्रण मिलता
है, बहों हमे गाहंस्थिक जीवन को सुन्दर और सफल बनाने की शिक्षा प्राप्त हाती है|
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