सम्यक्त्व-कौमदी | Samyaktv Kaumdi
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
224
श्रेणी :
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No Information available about श्रीस्वामी मनोहरदासजी महाराज - Shriswami Manohardasji Maharaj
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ११ )
गथधिा-दीहा उया इड्डिमेंता, सर्मीद्भधा काम रूविणो ।
अहुणोव वन्ना संकाता, ध्ुजोअचमालीप्पमा ॥६॥
उ० अ ५ गाथा २७ |
भावाथ-बह देवता वहा स्त्रग लोकपें वेक्रय लब्धी के धा-
रक नाना प्रकार के सुख भोणते हैं। ओर ऐसे मालूम होते
हैं कि जाने अब ही आके उत्पन्न हुए हो, उनके शरीर
का प्रकाश सूर्य से भो कही अधिक होता रै। बह देवता
देवाय को भोगकर मतुष्य होता है। |
गाथा-भोज्चा माणुस्षद् भोए, अप्पडि सूये अहा उयं 'ुव्वि
विसुद्द सद्वमे, केवल बोहि बुज्किया ॥१०॥ उञ श्गा१ ६
भावार्थ-मलुष्य के वह सर्वोत्कृष्ट सुखों को भोग कर केवली
भाषित धर्म श्रवणकर जिन दीक्षा ले छकाया का रक्षक
बन जाता है ओर फिर
गाथा--खितता एव्व कम्मादं, संजमेणं तवे.
एय। सिद्धि मग्ग मएपत्ता, ताधिणो परि
निजुड़े ॥१ १॥ द० अ० १ गा० १५
भावाथे-जपतप संयस से वह उन पूर्बले (पहले) कर्मोको
चय कर इसनासमान शरीर को छोड़कर मोक्ष में जा पहुंच-
ता है। भगवान के सुखारबिन्द से निकली हुई अमृत मय
बाणी को श्रवणकर राजा श्रेणिक कहने लग-1 हे भर्वन्
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