जवाहर-ज्योति | Jawahar Jyoti
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
296
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अह्मचर्य ९
अपूर्श व्रह्मचयं की साधना के हारा परं बरह्मचयं तक पहुँचा जा
सकता है |
श्री उत्तराध्ययन सूत्र के १६ वें अध्ययन की नियुक्ति में
ब्रह्मचय के चार भेद बताये गये हैं। नास ब्ह्मचये, स्थापना
अह्यचये, द्रव्य त्रह्मयय और भाव त्रह्मचय ।
जो लोग नाम से ब्ह्मचारी हैं पर ब्रह्मचय का पालन नहीं
करते, उनके ब्रह्यचारीपन को शाख (नाम त्रह्मचये' कहते हैं | नाम
के ब्रह्मचर्य से कछ भी होता-जाता नहीं है । उसके साथ भाष
अह्यचर्य' का होना आवश्यक है | जो भाव से ब्ह्मचय का पालन
न करते हुए मी नाम से ब्रह्मचारी कहलाते हैं वे दुनिया में
सम्मान प्राप्त करने की कामना करते हैं । संसार में हीरा-मीती
पहनने वालों का आदर होते देख कर कितने-क लोग सच्चे हीरा-
सोतियों के अभाव सें, आदर-सत्कार पाने के लिए नकली हीरा-
मोती पहनते हैं । नकली हीरा-मोती पहनने का उनका उद्देश्य
सिर यही होता है कि नखरे करके किसी प्रकार लोगों को धोखा
दिया जाय | इसी प्रकार संसार में श्रह्मचारी का आदर-सन्मान
होते देखकर उसी प्रकार का आदर-सन्मान पाने की लालसा से
कुछ लोग नाम मात्र के ऋह्मचारी बन बेठते हैं--व्रे ब्रह्मचर्य का
पालन नहीं करते । ऐसे ब्रह्मचयं को शास्त्रकार লাল ऋअह्मचर्य
कहते हैं । यह नाम त्ह्मचर्य की वात हुईं ।
जो स्वयं ब्रह्मचय का पालन नहीं कर सकता किन्तु ब्रह्मचर्य
या ब्रह्मचारी की सूर्ति वताकर और उससे काम चल जावया--
ेसा सोचकर; मृति की स्थापना करके उसे मानता है वह् स्थापना
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