गणदेवता | Ganadevata
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13.43 MB
कुल पष्ठ :
609
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भग्नकाली । चण्डोमण्डप भी बहुत ही पुराना है । उसके छप्पर की ठाट को मानो
भजर-अमर करनेके छिए हाथी-सूंढ़, वड़दछ, ठोरसंगा--सब प्रकार की. उकड़ियों व
वनवाया गया था । नोचे को जमीन भी सनातन नियम से माटी की थी । इसी चण्टी*
मण्डप में दरो-चटाई विछाकर पंचायत बैठी । कक
गिरीश और अनिरुद्ध भी आये माखिर । दोनों रामय पर पहुँचे । बैठक में दो
गाँवों के जामे-माते लोग जमा हुए थे । हरीदा मण्डल, मवेश पाल, मुकुन्द घोष, कोहि-
वास मण्डल, नटवर पाठ--ये सबके सब वज्धनी लोग थे, गाँव के मातवर सदृगोप ।
पड़ोस की वस्ती के द्वारका चौधरी भी भाये थे। ये एक विशिष्ट और प्रवीण व्यक्ति
थे, इलाके में इनका अच्छा मान था । आचार-व्ययहार और सूसनवूस के लिए सब
की श्रद्धा के पात्र थे । भाज भी लोग कहा करते--आख़िर हैं केसे पानदान के, यह भो
तो देखना है ! चौधरी के पुरखे कभी इन दो गाँवों के उमीदार थे : भाज अवश्य ये
एक सम्पन्न किसान ही गिने जाते हैं। दूकानदार वृन्दावन पाठ--वह भी सम्प्
भादमी । मध्यवित्त अवस्था का कम उम्र का खेतिदर गोपेन पाठ, राखाल मण्डल,
'रामनारायण घोप--पये सब भी हाजिर हुए थे । इस बस्ती का एकमाशर ब्राह्मण बाशिन्दा
हरेन्द् घोपाठ, उस वस्ती का निशि मुखर्जी, पियारी वनर्जी--ये सब भी एक ओर
बैठे थे ।
मजलिस के लगभग बीच में जम कर बैठा था छिरू पाल--यह जगह उसने
खुद लो थी आकर । छिरू यानो श्रीहरि पाठ ही इस बस्ती का नया घनी था । इसे
हलके में जो गिने-चुने धनी हैं, दौलत में छिरू उनमें से किसी से भी कम
ऐसा हो अनुमान था लोगों का । बड़ा-सा चेहरा, स्वभाव से थलग और बड़ा हो खूखार
भादमी । दौलत के लिए जो सम्मान समाज को देता है, वह सम्मान ठीक उसी
कारण से छिरू का नहीं था । अभद्र, क्रोधी, गेंवार, घनो छिरू पाठ को लोग
मन-ही-मन घूणा करते; बाहर से डरते हुए भी घन के अनुरूप सम्मान उसका कोई
नद्दी करता । छिख को इस बात का क्षोभ था कि छोग उसका सम्मान नहीं करते,
इसलिए वह सब पर खोझा रहता । वह जवरन यह सम्मान पाने के लिए कमर वें
तैयार रहता । इसलिए जब भी ऐसी कोई सामाजिक बैठक होती, वह बैठक के ठीक
बीच में जमकर बैठ जाता ।
एक भोर मज़बूत लम्बा-तगड़ा साँवला-सा युवक निरा निःस्पृह्-सा एक भोर
खम्मे हे लगकर खड़ा था। यह था देवनाथ घोष--इसो वस्ती के सदृगोप खेतिहर
का बेटा । अवश्य देवनाथ खुद से खेती नहीं करता, वह स्थानीय यूनियन वोर्ड के फ्री
प्राइमरी स्कूल का अध्यापक था। आने की वैसी इच्छा न रहते हुए भी वह आया
था, उसे पठा था कि बनिरुद्ध का यह जो अन्याय हैं, उस अन्याय की जड़ कहाँ हैँ 1
उसकी यहू निःस्पदता इसीलिए थी कि जिस दैठक में छिरू पाल-जैसा आदमी
माला के मनका-जैसा प्रधान वन बैठा दो, उस बैठक पर उसे आस्था नहीं । इसी
तर गणदेवत्य
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