गणदेवता | Ganadevata

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Ganadevata by ताराशंकर वंद्योपाध्याय - Tarashankar Vandhyopadhyay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भग्नकाली । चण्डोमण्डप भी बहुत ही पुराना है । उसके छप्पर की ठाट को मानो भजर-अमर करनेके छिए हाथी-सूंढ़, वड़दछ, ठोरसंगा--सब प्रकार की. उकड़ियों व वनवाया गया था । नोचे को जमीन भी सनातन नियम से माटी की थी । इसी चण्टी* मण्डप में दरो-चटाई विछाकर पंचायत बैठी । कक गिरीश और अनिरुद्ध भी आये माखिर । दोनों रामय पर पहुँचे । बैठक में दो गाँवों के जामे-माते लोग जमा हुए थे । हरीदा मण्डल, मवेश पाल, मुकुन्द घोष, कोहि- वास मण्डल, नटवर पाठ--ये सबके सब वज्धनी लोग थे, गाँव के मातवर सदृगोप । पड़ोस की वस्ती के द्वारका चौधरी भी भाये थे। ये एक विशिष्ट और प्रवीण व्यक्ति थे, इलाके में इनका अच्छा मान था । आचार-व्ययहार और सूसनवूस के लिए सब की श्रद्धा के पात्र थे । भाज भी लोग कहा करते--आख़िर हैं केसे पानदान के, यह भो तो देखना है ! चौधरी के पुरखे कभी इन दो गाँवों के उमीदार थे : भाज अवश्य ये एक सम्पन्न किसान ही गिने जाते हैं। दूकानदार वृन्दावन पाठ--वह भी सम्प् भादमी । मध्यवित्त अवस्था का कम उम्र का खेतिदर गोपेन पाठ, राखाल मण्डल, 'रामनारायण घोप--पये सब भी हाजिर हुए थे । इस बस्ती का एकमाशर ब्राह्मण बाशिन्दा हरेन्द् घोपाठ, उस वस्ती का निशि मुखर्जी, पियारी वनर्जी--ये सब भी एक ओर बैठे थे । मजलिस के लगभग बीच में जम कर बैठा था छिरू पाल--यह जगह उसने खुद लो थी आकर । छिरू यानो श्रीहरि पाठ ही इस बस्ती का नया घनी था । इसे हलके में जो गिने-चुने धनी हैं, दौलत में छिरू उनमें से किसी से भी कम ऐसा हो अनुमान था लोगों का । बड़ा-सा चेहरा, स्वभाव से थलग और बड़ा हो खूखार भादमी । दौलत के लिए जो सम्मान समाज को देता है, वह सम्मान ठीक उसी कारण से छिरू का नहीं था । अभद्र, क्रोधी, गेंवार, घनो छिरू पाठ को लोग मन-ही-मन घूणा करते; बाहर से डरते हुए भी घन के अनुरूप सम्मान उसका कोई नद्दी करता । छिख को इस बात का क्षोभ था कि छोग उसका सम्मान नहीं करते, इसलिए वह सब पर खोझा रहता । वह जवरन यह सम्मान पाने के लिए कमर वें तैयार रहता । इसलिए जब भी ऐसी कोई सामाजिक बैठक होती, वह बैठक के ठीक बीच में जमकर बैठ जाता । एक भोर मज़बूत लम्बा-तगड़ा साँवला-सा युवक निरा निःस्पृह्-सा एक भोर खम्मे हे लगकर खड़ा था। यह था देवनाथ घोष--इसो वस्ती के सदृगोप खेतिहर का बेटा । अवश्य देवनाथ खुद से खेती नहीं करता, वह स्थानीय यूनियन वोर्ड के फ्री प्राइमरी स्कूल का अध्यापक था। आने की वैसी इच्छा न रहते हुए भी वह आया था, उसे पठा था कि बनिरुद्ध का यह जो अन्याय हैं, उस अन्याय की जड़ कहाँ हैँ 1 उसकी यहू निःस्पदता इसीलिए थी कि जिस दैठक में छिरू पाल-जैसा आदमी माला के मनका-जैसा प्रधान वन बैठा दो, उस बैठक पर उसे आस्था नहीं । इसी तर गणदेवत्य




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