श्री कुंद कुंद वचनामृत | Shree Kund Kund Vachnamrit

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Shree Kund Kund Vachnamrit by ब्रम्हचारी नन्दलाल महाराज - Bramhchari Nandlal Mharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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न ~ ज ¬ च च = সিল পাত পাখি ८---अकता । षटद्रन्यात्मक!-सोक प्रकाशक, अर अलोक काजो ज्ञाता रागदष क्रोधादि भाव का, ज्ञातारे हे वह नहिं करता ॥ भावात्मक हो भाव सदाका, आत्म सूप ही प्रगट रहा । क्षीर नीरवत्‌ देख व्यवस्था, जिन-वरने व्यवहार कहा, ९--दशन मोह जीवरु पुद्गल द्रव्य सदाका, आस्वादि कछ द्रव्य नहीं । पुण्य पाप भी द्रव्य कहां ! मति*- वान, पिचारो बात सही ॥ भावात्मक हो उदय आवता, बिना-ज्ञान° क्यों भाता? है | यह मिभ्याच्च सहज भावात्मक, दशन-मोह कहाता है ॥ १-छह द्रव्य । २--जाननेवाला । ३--ज्ञानता। ४३--क्रोधादि भाव | ५--बुद्धि । ६--ठीक | ७--अज्ञान | ८--अपनाता |




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