कुतुबन कृत मिरगावती | Kutuban Kirt Mirgavati
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17 MB
कुल पष्ठ :
502
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ग्
सोमबंस सोमेसुर राजा | बेरागर अधिपति छिति ভাজা ॥
दिसि पूरव प्रतिपाख्न करदं । धमराज करुमष हरदं ॥
उपजदि जहाँ. अमोलक हीरा । सुंडाहल उपजर्हिं बरु वीरा #
इससे ज्ञात होता है कि वैरागर पूर्वमें स्थित था और वहाँ हीरा और हाथी दोनों
पाये जाते थे। इस सूचनाके अनुसार वेरागरके चॉँदा जिलेमें होनेका अनुमान
ठीक नहीं जान पड़ता | किन्तु हम स्वयं पूर्वमे एेसा कोद स्थान दढ पानेमे असमथ
हैं जहाँ हीरा और हाथी दोनों मिलते हों | यदि इसकी पहचान कोई पाठक कर सकें
तो बतानेकी कृपा करें |
अहुट बच्च
कड़वक २८५ की पंक्ति ७ के प्रथम दो दब्दोंकों हमने अबहुत बज़र पढ़ा दै।
वस्तुत उसका उचित पाठ है अँडुट बच्च, जो एकडला प्रतिका पाठ है | अडुट वज्ध
( साढ़े तीन बज ) का आशय समझ न पानेके कारणही हमने यह सरल पाठ
अपनाया था । अभी शिवगोपाल मिश्र सम्पादित डंगवै कथा देखनेसे ज्ञात हुआ कि
कुतबनने यहाँ डंगवै कथाकी ओर संकेत किया है। इस कथाके अनुसार नारदने
उर्वशीको दिनमें घोड़ी हो जानेका शाप दिया था | ॐहुट ( सादे तीन ) व्र एकत्र
होनेपर ही उसका मोक्ष सम्भव था | अतः कथा प्रसंगमे भीम ओर कृष्णम युद्ध होता
ह ओर उन दोक वज्रायुध गदा ओर चक्र यकराते दै । उस समय दोनौके बीच-चाव
करनेके निमित्त हनुमान अपना वज्रसम लगूर फैला देते दै । इस प्रकार तीन वञ्र एकत्र
हो जाते दै । भीमका शरीर आये वल्के समान कदा जाता दै, इस प्रकार सादे तीन
वज़ोंका संयोग होता है और उर्वशी बन्धनसे मुक्ति पा जाती है। यहाँ कुतुबन उसीकी
ओर संकेतकर कहते हैं-अहँट वज्न जो हों इक ठाँ, तो न यह बँदि छूट
( साढे तीन वज्र एकत्र हो जोय तव मी यह बन्दी न छूट पायेगा ) ।
पाट-दोष
पुस्तक मुद्रित হী জান पर ज्ञात हुआ कि प्रेस कापी तैयार करनेमें असावधानी,
म॒द्राराक्षसोँंकी कृपा और प्रूफ देखनेमें चूक हो जानेके कारण काव्य-पाठमें अनेक
दोष उत्पन्न हो गये हैं। यथासम्भव उन दोधोंका परिमार्जन यहाँ किया जा
रहा है--
पंक्ति. दृषित पाठ. झुद्ध पाठ पंक्ति दूषित पाठ शुद्ध पाड
८1१ बढ़न बुढ़न २२।६ मिरिगि मिरिमि
१५५४ व न २६।४ दुर्ह द
१६४ रेको एको २९।२् कहि कहंदि
१७६ कौन करन হাথ तेज सेज
१९1१ वेग बेगि 05 घरहिं धरि
१९।७ खेल येकि ०२४ हा द्दों
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