कुतुबन कृत मिरगावती | Kutuban Kirt Mirgavati

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Kutuban Kirt Mirgavati by डॉ परमेश्वरीलाल गुप्त - Dr. Parmeshwarilal Gupt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ग्‌ सोमबंस सोमेसुर राजा | बेरागर अधिपति छिति ভাজা ॥ दिसि पूरव प्रतिपाख्न करदं । धमराज करुमष हरदं ॥ उपजदि जहाँ. अमोलक हीरा । सुंडाहल उपजर्हिं बरु वीरा # इससे ज्ञात होता है कि वैरागर पूर्वमें स्थित था और वहाँ हीरा और हाथी दोनों पाये जाते थे। इस सूचनाके अनुसार वेरागरके चॉँदा जिलेमें होनेका अनुमान ठीक नहीं जान पड़ता | किन्तु हम स्वयं पूर्वमे एेसा कोद स्थान दढ पानेमे असमथ हैं जहाँ हीरा और हाथी दोनों मिलते हों | यदि इसकी पहचान कोई पाठक कर सकें तो बतानेकी कृपा करें | अहुट बच्च कड़वक २८५ की पंक्ति ७ के प्रथम दो दब्दोंकों हमने अबहुत बज़र पढ़ा दै। वस्तुत उसका उचित पाठ है अँडुट बच्च, जो एकडला प्रतिका पाठ है | अडुट वज्ध ( साढ़े तीन बज ) का आशय समझ न पानेके कारणही हमने यह सरल पाठ अपनाया था । अभी शिवगोपाल मिश्र सम्पादित डंगवै कथा देखनेसे ज्ञात हुआ कि कुतबनने यहाँ डंगवै कथाकी ओर संकेत किया है। इस कथाके अनुसार नारदने उर्वशीको दिनमें घोड़ी हो जानेका शाप दिया था | ॐहुट ( सादे तीन ) व्र एकत्र होनेपर ही उसका मोक्ष सम्भव था | अतः कथा प्रसंगमे भीम ओर कृष्णम युद्ध होता ह ओर उन दोक वज्रायुध गदा ओर चक्र यकराते दै । उस समय दोनौके बीच-चाव करनेके निमित्त हनुमान अपना वज्रसम लगूर फैला देते दै । इस प्रकार तीन वञ्र एकत्र हो जाते दै । भीमका शरीर आये वल्के समान कदा जाता दै, इस प्रकार सादे तीन वज़ोंका संयोग होता है और उर्वशी बन्धनसे मुक्ति पा जाती है। यहाँ कुतुबन उसीकी ओर संकेतकर कहते हैं-अहँट वज्न जो हों इक ठाँ, तो न यह बँदि छूट ( साढे तीन वज्र एकत्र हो जोय तव मी यह बन्दी न छूट पायेगा ) । पाट-दोष पुस्तक मुद्रित হী জান पर ज्ञात हुआ कि प्रेस कापी तैयार करनेमें असावधानी, म॒द्राराक्षसोँंकी कृपा और प्रूफ देखनेमें चूक हो जानेके कारण काव्य-पाठमें अनेक दोष उत्पन्न हो गये हैं। यथासम्भव उन दोधोंका परिमार्जन यहाँ किया जा रहा है-- पंक्ति. दृषित पाठ. झुद्ध पाठ पंक्ति दूषित पाठ शुद्ध पाड ८1१ बढ़न बुढ़न २२।६ मिरिगि मिरिमि १५५४ व न २६।४ दुर्ह द १६४ रेको एको २९।२्‌ कहि कहंदि १७६ कौन करन হাথ तेज सेज १९1१ वेग बेगि 05 घरहिं धरि १९।७ खेल येकि ०२४ हा द्दों




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