भारती का सपूत | Bharati Ka Sapoot

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Bharati Ka Sapoot by रागेय राघव - Ragey Raghav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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পদ ६. क उससे कोई दान माँगता तो वह कहाँ से देता | लेकिन इसके साथ ही यह नहीं यूलना चाहिये कि भारतेन्दुकाल में शोर शब भी अनेक घमसुबेर है । देने के लिये दिल की जरूरत है | माना कि गारतेन्दु के पास वैभव था, तभी सके, परन्तु सब ही वेभव वाल्ले दे नहीं दिया करते | और फिर भारतेन्‍्दु तो फक्कड़ व्यक्ति थे । निडर आदमी ये। उनके जीवन को समझने के लिये कुछ बातें जरूर समझ लेनी चाहिये | भारतेन्दु भारतीय स्वतन्त्रता के पहले संग्राम के समय सात बरस के थे | शर्थात्‌ श्य४० ई० में उनका जन्म हुआ था । उनकी झत्यु ३४ वर्ष ४ महीने की श्रवस्था में माघ कृ० ६ १६४१वि० संवत्‌ श्रर्थात्‌ ६ जनवरी (८८४ में हुई | याद रहे १८८४ ई० में कॉम्रेस को हम ने जन्म दिया था। भारतेनु इस प्रकाश उस समय पंदा हुए जब सार्मतीय व्यवस्था बुरी तरद्द टूट रही थी शौर पू जीवादी व्यवस्था अपने उस्मेष मे राष्ट्रीयता का रूप ग्दण कर रही थी। भारत में अ्रज्ञरेज़ों के आने पर, कुछ कुत्तित समाज शास्त्रियों ने कहा कि बह झज्जरेज़ विजय इतिहास के समग्र दृष्टिकोश से एक सफलता का कारण बनी क्योंकि भत्ते ही कोई जाति हो, आखिर तो वह संसार में पू'जीबाद की विजय थी श्रीर सामंतीय व्यवध्था को पराजित करने बाला पू'जीवाद सदा ही इतिहास में प्रगतिशील तत्त्व है | ऐसे लोग तो लकीर के फ़फीर हैँ। इसी प्रकार के देशकाल के परे सोचने वाले लोग, आगे चलकर एक पक्ष में श्री० एम० एन० राय के शअमु यागी बन गयं ये, दूरे पच्‌ में वे साम्यवादी पार्टी के फूड परस्त अबसरवादी हितत समाज शार पै प्राच्यं बन गये थे | वास्तविकता कुं और थी। श्रद्धरेन भारत में आये तो उन्होंने सहाँ की बहुत सी रियासतों में सामंत- बाद से सम्रझोता कर लिया। यह देश यद्यपि श्रपने साधारण रूप में वर्ग- संघर्षों की प्रचलित रूप से ज्ञात पसपरा और विकास की मंजिलों में से गुशरा है--नेसे--सणाज दास प्रथा से सभ्यता कौ ष्रोर द्याया चछौर्‌ किर सासन्तीय व्यवस्थां आई, जिसके बाद पू जीबाद श्राया, परम्तु इसमें बहुत सी ऐेसी बातें हो गई जो यूरोप के ढांचे पर नहीं हुई । यथपि सामंतीय व्यवस्था ने धीरे-धीरे पूँजीबादी व्यवस्था की ओर कदम बढ़ाया, पर मशीनों की तरक्की न होने के




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