काव्य दर्पण | Kavya Darpan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
42.51 MB
कुल पष्ठ :
536
श्रेणी :
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No Information available about पं रामदहिन मिश्र - Pt. Ramdahin Mishra
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भर डे कवि या कोई अन्य कवि दावे के साथ कभी यह नहीं कह सकता है कि मैंने कविता चिखने के पूव दो-चार काव्यो को पढ़ा नही सुना नहीं । पढ़ने-लिखने की बात को वे स्वीकार नहीं कर सकते । यदि ऐसी बात है तो वे यह कैसे कह सकते है कि मेने यह न पढ़ा और न वह पढा । लच्य-ग्न्थों को पढ़ना अकारान्तर से लच्ण- _ अन्थो का ही पढ़ना है। लचुण-अन्थ तो लल््य-प्रन्थों पर ही निभर करते है क्योकि लच्य-अन्थों मे ने ही बते पायी जाती है -जिनपर... लन्नणु-ग्रन्थों में बिचार किया जाता है । दूसरी बात यह भी है कि उस वातावरण का भी प्रभाव पढ़ता है जिसमे _बराबर काव्य-चच्ा होती रहती है। एक प्रकार से इस चचों में शाख्रीय विषयों कौ भी अवतारणा हो जाती है । _ लक्नण-अन्थ तो साहित्य-शिन्ता का ककहरा है जिसके _ _झप्ययन से उसमे सहज प्रवेश हो जाता है और ल्द-यन्यों के सहारे ललण-ग्न्य का ज्ञान प्राचीन _ लिपियो के उद्घार-जेसा कठिन नहीं होता । लक्षण-ग्रत्थ-- साहित्यशास्त्र का झष्ययन--काव्य-बोध का माग म्रशस्त कर देता है । कुछ प्रतिमा- शाली कवियों के कारण काव्यशास्त्र के अध्ययन की झअनावश्यकता सिद्ध नहीं हो सकती। - पक दूसरा थ्राक्षेप एक प्रगतिबादी साहित्यिक लिखते ह---रस-सिद्धान्त श्रादि के विपय में अवश्य मेरा मतभेद है क्योंकि नवीन मनोवैद्ानिक संशोधनो ने प्राचीन रस-सिद्धान्त मैं आमूल अन्तर १ कर दिये हैं । उदाहररार्थ फ्रायड वात्सल्य को भी रति-भाव मानता है या जुगुप्ता या घुणा भी एक प्रकार की रति-भावना ही है । चूँ कि स्स-सिद्धान्त कोई अ्रय्ल वस्तु नहीं है अतः छुंद अलंकार भाषा श्ादि बाह्य रुपों हा ९ ७ के सम्तन इसकी भी नये सिरे से व्याख्या होनी चाहिये । यह केवल सगरेजी-साहित्य पर निमर रहने का ही परिणाम है । रस-सिद्धान्त के सम्बन्ध में सनोवैदानिक अनुसन्घानों ने जो नया दृष्टिकोण उपस्थित कर दिया है वह क्या है इसका पूर्ण प्रतिपादन हो जाना चाहिये था । रस-सिद्धान्त में यह एक नयी वात जुड़ जाती या उलका रूप हो बदल जाता । उदाहरण की बात से तो यह मालूम होता है कि उससे कोई रस-सिद्धान्त नहीं बनता । आमूल श्न्तर की बात तो कोई अथ दी नहीं रखती । यह तो लेखनी के साथ बलात्कार हैं | फ़ायड की यह वाई नयी बात नहीं है। वाय्सन विहैवरिज्म रिट%2एए0. हडाएा नामक अन्थ में यह बात लिख चुका है जिसका सारांश २. साहित्यप्तदेश गत १९.४६
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