यात्री के पत्र | Yatri Ke Patra

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Yatri Ke Patra by रमेश याज्ञिक - Ramesh Yagyik

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ट॒ट्ट को चेतक नाम दे दिया है। चेतक ऐसा हुआ होता तो राणा प प्रत का क्‍या हुआ होता ! | पिक सिटी दिल्ली बिफोर टाइम पहुंचा देगी एसा लगता हे, पालम हवाई अड्डे के करीब से गुजर रहे हैं। दूर-दूर तक रनवे पर लाल, पीली, नीली तेज रोशनियाँ फैली हैं | किताब बन्द कर बंग में रखता हूँ व सामने बैठा यात्री जैसे इसी का इंतजार कर रहा था, पूछता है-- आप दिल्‍ली में कहाँ जायेंगे । मैंने कहा--कनाटप्लेस के एक होटल में ठहरूगा । उसने बेलाग कहा--मैं भी आपके साथ आटो में चलूँगा। मुझे उसी ओर पहाड़गंज जाना है । अनजाने लोग दिलचस्प भी हो सकते हैं और डर भी लगता है-- कहीं '**? मैंने सोचा शायद यह पैसे की बचत सोच रहा है--ठीक है साथ चलियेगा, जो पैसा होगा बाँट लेंगे। उसने कहा--साहब, पैसे की बात नहीं है, पंसा तो मैं ही दे दूंगा । अभी पन्द्रह रोज पहले इसी ट्रेन से आया था--आटो में ड्रायवर के साथ उसका दोस्त भी था। रास्ते में सूनी जगह पर रोककर उन्होने चाकू निकाला और पैसे, घड़ी, ब्रीफकेस सभी कुछ ले गये। साहब आजकल दिल्‍ली बड़ी असुरक्षित हो गई है उसकी बात में कुछ वजन महसूस हुआ । उसी के साथ गया। आठो का किराया मुझे नहीं देने दिया । मैं सोचता रहा, यदि देश की राजधानी दिल्‍ली का नागरिक इतना भयाक्रांत है--इतना अनसेफ महसूस करता है तो अन्य स्थानों में क्या होगा ? सामने कौ वथ पर दो यूवक बैठे थे आधुनिकता का प्रतीक बने हुए-- जीन्स और बदरंग कमीज पहने । रूखे बड़े बाल, बढ़ी हुई दामे) बेतरतीब अमरीकी लहुजे मे-- गलत अंग्रेजी मे बाते कर रहै थे । बम्बइया फिल्मों में ही दिलचस्पी थी, यह उनके पास पड़ी घटिया (गँसिप्स) गुफ्तग्‌ वाली पत्रिकाओं से जाहिर था । एक ने कहा--यार, उस दिन' सत्यजीत रे की फिल्म “शतरज के खिलाडी देखी-- क्या बोर किया है । मैं चौंका, शतरंज के खिलाड़ी और बोर--मैंने भी तो देखी है वह दोनों को मिक्स मत करो / 17




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