अनुसंधान और आलोचना | Anusandhan Aur Alochna

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Anusandhan Aur Alochna by कन्हैयालाल सहल - Kanhaiyalal Sahal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बिना परिश्रम के साधक केवल सतही जानकारी से सन्तुष्ट हौ जाता है किन्तु जो तपस्वी परिश्रम का आश्रय लेता है और झनैक वर्षो तक ब्रह्मचयं का पालन करता है, वह इन्द्र की तरह अपनी अ्रमीष्ट-सिद्धि में सफल होता है । न कालनियमो वामदेववत्‌ ।२०। ज्ञान की प्राप्ति कितने समय में हो, इसका कोई नियम नहीं ह । जन्म- जन्मान्तरों के संस्कार से भी शीघ्र ज्ञान का उदय हो सकता है। वामदेव ऋषि को गर्भ की अवस्था में ही आत्मज्ञान हो गया था । ऐतरेय उपनिषद्‌ में वामदेव कहते हैं--'मैं गर्म में रह कर ही देवताओं के अनेक जन्मों को जान चुका हं । तत्व-ज्ञान की प्राप्ति से पहले मैं सैकडों कठोर पिजरों में ग्राबद्ध था । अब मैं श्येन के समान वेग द्वारा उन्हें काट कर मुक्त ভী বানা ছু 1১ ৯ वृह्दारण्यकोपनियद्‌ में मी कहा गया है, पहले यह ब्रह्म ही था, उसने अपने को ही जाना कि मैं ब्रह्म हैँ। अतः वह सर्व हो गया। उसे देवों में से जिस- जिसने जाना, वही तद्गप हो गया । इसी प्रकार ऋषियों और मनुष्यों में से भी टा त, जिसने उसे जाना, वही तद्रप हो गया । उसे श्रात्मरूप से देखते हुए ऋषि वामदेव ने जाना । >< लब्धातिशययोगादा तद्रत्‌ ।२४। जिसका ज्ञान चरम उत्कर्ष पर पहुंच गया है, एेसे महापुरुष के संगसे मी कोई व्यक्ति ज्ञान-प्राप्ति में समर्थ हो सकता है जिस प्रकार अलक नृप ने महायोगी दत्तात्रय के संग के कारण ज्ञान प्राप्त किया था ।० महाभारत के अश्वमेध पर्व में मी अलक का उपाख्यात उपलब्ध होता है । ग्रलकं नामक राज्धि ने अपने धनुष की सहायता से समुद्रपयन्त पृथ्वी पर विजय प्राप्त कर ली। तब उन्होंने मन, नासिका, जिद्ना, त्वचा, श्रोत्र, चक्ष्‌ आदि पर अपने स्थूल बाणों द्वारा विजय प्राप्त करनी चाही। महाभारतकार ने अ्रलकं और मन आदि का वार्तालाप करवाया है जिसमें मन आदि ने अलक॑ से यही कहा है कि तुम इन स्थूल बाणों के प्रहार से अपना नाश कर लोगे । जब शअ्रलक बुद्धि एर भी इन्हीं बाणों के प्रहार की बात सोचने लगे तो बुद्धि ने कहा -- >< बहदारण्यकोपनिषद्‌ १।४।१० ० माकष्डेय पुराण ३८-४३ अध्याय द्रष्टव्य




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