अंगुत्तर निकाय | Anguttar Nikay

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Anguttar Nikay by भदंत आनंद कौसल्यायन -BHADANTA AANAND KOSALYAYAN

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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९ सम्बुंद्ध द्वारा इस बातकी घोषणा किये जानेपर कि अमुक आखव क्षीण हये गये है, कोई श्रमण या ब्राह्मण या देव या मार या ब्रह्मा अथवा विद्वमें कोई और यथार्थ-खूपसें ` यह दोषारोपण कर सके कि इन आंख़वोंका क्षय नहीं किया गया हैं। भिक्षओ इस प्रकारका कोई लक्षण दिखाई न देनेके कारण ही, मैं कल्याण-युक्त, निभय, वैशार-युक्त होकर विचरता हँ। मैं इसका कोई लक्षण नहीं देवता कि सम्यक्‌- सम्बुदध दवारा इस वातकी घोषणा किये जानेपर किं अमुक धर्म ( निर्वारण-मार्गके ). बाधक धर्म है, कोई श्रमण या ब्राह्मण या देव या मार या ब्रह्मा अथवा विरवमें कोई और यथार्थ रूपे यह दोषारोपणं कर सके कि उन उन धर्मोका सेवन अर्थात्‌ उन बातोके अनुसार आचरणं (निर्वाण-मा्मे) मे बाधक नहीं होता भिक्षुमो, इस प्रकारका कोई क्ण दिखाई न देनेके कारण ही, मै कल्याण-युक्त, निर्भय, वैशारय- युक्त होकर विचरता हूं । मैं इसका कोई लक्षण नहीं देखता कि सम्यक्‌ सम्बद्ध द्वारा इस बातकी घोषणा किये जानेपर कि अमुक अमुक धर्मोका पालन दुःख-क्षयंका कारण होता है, कोई श्रमंण या ब्राह्मण या देव या मार या ब्रह्मा अथवा विश्वमें कोई और यथार्थ रूपसे यह दोषारोपणकर सके कि अमुक अमुक धर्मोंका पालन दुःख-क्षयका कारण नहीं होता। भिक्षुओ, इस प्रकारका कोई लक्षण दिखाई न देनेके कारणं ही मै कत्याणयुक्त, निभय, वशारच-युक्त' होकर विचरता हं । भिक्षुओ, यें चार ` तथागतके वैशारदय ह, जिनं वैशारयोसे युक्त होकर तथागत वृषभ-स्थानको प्राप्तं होते ह, परिषदोमें सिंहनादं करते दँ ओर ब्रह्मचक्रं प्रवतित करते है । | यं केचि ये वादपथा. ` पुथुस्सिता य्धिस्सिता ` समणब्राह्यणाच तथागतं पत्वान ते भवन्ति विसारं वादपथातिवत्तं ` यौ धम्मचक्कं अभिभूय्य कैवलं पक््तथि सब्बभूतानुकम्पि तं तीदिसं देवमनुस्ससेदु ` सत्ता नमस्सन्ति भवस्स पारणं [ जितने भी बहुतसे ऐसे वाद हैं, जिनमें श्रमण-ब्राह्मण उल्झे हुए हैः वै बादोंसे मुक्त विशारद, तथागतके पासं पहुँचनेपर शान्त हो जाते है | प्राणियोंपर अनुकम्पाकर जिन्होंने धर्म चक्र प्रवर्तित किया, देव-मनुष्य अव-पारंगत बुद्धकों प्राणी समस्कार करते हैं। | | 4




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