ओ. हेनरी की कहानिया | O Henari Ki Kahaniya

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प्रो. सत्यप्रकाश जोशी - Prof Satyaprakash Joshi

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हैरी हांसन - Harry Hansen

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भा थो. हेनरी की कदानियों संगत तथ्य पर सावधानी से छानबीन कर लें । सप्ताद के श्राठ डालर हों या साल के दस लाख कया फर्क है? किसी गणितज्ञ या ज्ञानी से पूछिये तो वह ग़लत उत्तर देगा | मैणियों में अमूल्य उपद्ार देने की प्रथा थी पर यह उपहार उनमें से नहीं था। इस कठिन विचार पर बाद में प्रकाश डाला जायगा | अपने ओवर्कोट की जेब में से जिम ने एक पैकेट निकाला और उसे मेज पर फेंक दिया | उसने कहा मुफे रालत मत समझना दैला मेरे खयाल से दुनिया की कोई चीज़ - चाहे वह बाल कटाना हो या और कुछ मेरी प्रियतमा के प्रति मेरे प्यार को कम नहीं कर सकती | पर अगर तुम इस पैकेट को खोलोगी तो तुम्हें मालूम होगा कि पहिले तमने मुझे क्यों स्तब्घ कर दिया था | सफेद अँगुलियों ने चपलता से उस कागज और डोरी को तोड़ा और तभी खुशी की एक उल्लास भरी चीख और बाद में यह लो सहसा सब कुछ नारीसुलम ऑँसुओों और सिंसकियों में परिवर्तित हो गया जिसे रोकने में ग्रहस्वामी को अपनी सारी तरकीबें काम में लानी पड़ीं | क्योंकि वहाँ बिखरे थे कंघे-कंघों का एक संग्रह माँग में लगाने के और पीछे लगाने के जिन्हें बाजार की बड़ी दुकान की खिड़कियों में देख . कर पाने के लिए कई दिनों तक देला ने उपासना की थी । सुन्दर कंघे निखालिस कछुवे की हड्डी के जिनके गोल किनारों पर जड़े हुए नग उन बिलीन डुए केशों के रंग पर फबते थे । वह जानती थी कि वे बहुत कीमती थे और निरादा हृदय उनकी चाहना-भर कर सकता था । और अब अब वे उसके थे पर वे पुँघराले बाल जो उनसे सजने की उ्ारकाक्षा रखते थे - अब जा सुके थे । देला ने उन कंधों को छाती से चिपका लिया और झाखिर अपनी डबडबायी आँखों को ऊपर उठा कर मुस्कराते हुए बोली जिम मेरे बाल बहुत जल्दी उगते हैं । ? और तब देला किसी झुलसी हुई बिल्ली की तरह उछली श्रौर विलाप करने लगी - ओह ओह जिम ने अभी कक उसके उपहार को देखा नहीं था | उसने उत्सुकता से अपनी खुली हथेली पर रख कर उसे सामने री




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