आत्मा प्रसिद्धि | Atma Prasiddhi Bhag-1

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Atma Prasiddhi Bhag-1 by महेंद्र कुमार - Mahendra Kumar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ज्ञान लक्षण से प्रसिद्ध होनेवाला - अनंत ध्म॑स्वरूप अनेकान्तमूर्ति आत्मा =-ि- {> दख “ भरी समयसार पृष्ठ ४५५ से क्ञानमात्र पर पूज्य स्वामीजी के आत्मसन्मुखताप्रेरक सुन्दर प्रवचन ११८ १११44 ११८१ श समयप्नार के परिशिष्ट में भ्रावार्यंदेवने श्रनेकान्त के स्वरूप का वर्णन किया है, उसमें प्रथम भ्रात्मा को ज्ञानमान्र कहा है, तथापि उसके भी भ्नेकान्तपना है--यह वात सिद्ध की है, तत्पश्चात्‌ भात्मा की भ्रनत शक्तियो में से ४७ शक्तियों का वर्णन किया है। उनमें से यहाँ प्रथम विषय के प्रवचन दिये जा रहे हैं, ४७ হাছিনী ঈ प्रवचन भागे क्रमश दिये जायेगे । ] ९८५ ८१५५८८५५ ११८ १ ^^ १४ र चीर सं० २४७४ कार्तिक कृष्णा १४ # - आत्मामें ज्ञानादि अनतधर्म हैं, उन्हे परद्रव्यपो और परभाधों से भिन्न बतलानेके लिये ध्ाचायंदेव 'शञान मात्र” कहते श्राये हैं। वहाँ भ्रात्मा को ज्ञान मान्न कहा है, तथापि एकान्त नही हौ जाता, क्योकि, शझात्मा ज्ञान मात्र है-ऐसा कहनेसे ज्ञान से विरुद्ध जो रागादि भाव हैं उनका तो निषेध हो जाता है, परन्तु ज्ञान के साथ रहनेवाले श्रद्धा, सुख आदि गरुणोका कही निषेध नही होता । इसप्रकार ज्ञानके साथ दूसरे श्रनन्त घर्मं भी भात्मा में साथ ही द्वोने से ज्ञान লাল श्रात्मा को अनेकान्तपना है, वह्‌ बात यह आचायेदेव प्रशन-उत्तर द्वारा स्पष्ट करते-हैं ।




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