बचन परम पुरुष पूरनधनी महाराजा साहिब | Bachan Pram Purush Puran Dhani Mharaja Sahib
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
20.16 MB
कुल पष्ठ :
514
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भाग १ 3 वचन मदागाज साइय [ ५
र-संसारी चाह श्वीर वासना के सघय सुरत देह में
फसी है फिर परमार्थी चाह जब इस से गालिय होगी
तब निरवंघ निरलेप श्पौर देही से रहित होगी धघ्पौर
विदेह हो कर श्रूप से जा समायगी-चबहुतेरे यहाँ
सतसंग मं भी संसारी चाह लेकर श्माते हैं कि बेटा
होवे व्याह होवे सत्था देकने हू तो अन्तर में यही
कहते हैं कि बेटा होवे भेट करते है तो थी ऐसी ही मन
में माँग होती है यानी घन संतान उट्टी को चाह अंतर
में समाई हुई है तो फिर चतलाश्ो ऐसे जीवँ को सतसंग
से क्या फायदा होगा ।
पसी डियानों दुनियाँ, भक्ति भाव नि चूस जी ।
फोइ श्रांवे सो चेटा सारे, यही झसाए दीजे जी ॥
फोई घाव डुफ्य पा सारा, दम पर द्िंग्पा फीजें जी ॥
फोइ राय तो दौलत मरँगे, सेट सरपइया सीज जी |
फोइ फराय प्याद संगत, खुनत सुसाइ रीसे, जी ॥|
सांचे फा फोइ गादफ नादी', भूठे जगन पर्नीज जी
कर फयार सुनो भाई सापों, पंघोा को पया पीजे जी ||
२-गर किसी से न भजन दुरूस्ती से चनता है न
ध्यान बनता है शोर न सुरस्रिन होता है सगर चित्त
में चाह परमाथ की लगी हुट हैं नो बस वह मालिक
का हो गया घोर वहीं झपनाणा टुस्ा है. दवा भार
त.
हिफाज़त हमेशा उस के सर है । राजपूताना मे
चाज़ शीरतँ का ब्याह पति की कलारी या दुपट मे
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