पट्टावली प्रबन्ध संग्रह | Pattavali Prabandh Sangrah

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Pattavali Prabandh Sangrah  by नरेन्द्र भानावत - Narendra Bhanawat

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about नरेन्द्र भानावत - Narendra Bhanawat

Add Infomation AboutNarendra Bhanawat

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
-( ११ :) जाते हैं। इन तीनों की पट्टावलियां भूल गुजराती लोंका की परम्परां से मिलतो हुई हैं। पर नागौरी लोंका गच्छ जो स० १४५८० के समय हीरागर श्रौर ऋषि रूपचन्दजी से प्रकट हुआ, उत्तका संवन्ध गुजराती लोंका की पट्टावत्ी से नहीं मिलता । यहां पर मुख्य रूप से नागौरी लोंका धोर गुजराती लोंका के मोटो पक्ष और जानी पक्ष वी पट्टावलियां प्रस्तुत की गई हैँ। भ्रन्य भी गद्य एवं पद्म में लोकागच्छ की पट्टावलियां प्राप्त होती हैं, पर उनका समावेश इनमें हो जाना है । संकलित ७ पट्टावलियों का प्रन्तरंग दर्शन इस प्रकार हैः-- (१) पहली पट्टावली “'पद्टावलो प्रवंध' में ऋषि रघुनाथ ने नागोरी लोंका गच्छ की उत्तत्ति से १६ वीं सदी तक का संक्षिप्त इतिहास प्रस्तुत किया है । रचनाकाल के ६ वर्ष वाद ही मुनि संततोपचन्द्र ने इसको प्रतिलिपि तैयार की । भापा अ्रधि- कांदा शुद्ध एवं सरल है | पट्टावलीकार ने २७ वे पट्टथर देवधिगणी तक का परिचय देकर २८ वे' चन्द्रसरि, २६ वें विद्याधर शाखा के परम निम्न॑न्थ संमतभद्र सूरि भर ३० वें ध्मंधोष सूरि माने हैं। घरंघोष सूरि ने धारा नगरी में पंवारवंशीय महाराज जगदेव झौर सूरदेव को प्रतिवोध देकर जेन वनाया । श्रत्तः इनसे धर्मघोष गच्छ प्रगट हुआ । धर्मघोष सूरि के वाद ३१ वें जयदेव सूररि, ३२ वे श्रो विक्रम सुरि, श्रादि श्रनेक भ्राचायं हुए 1 संवत ११२३ में ३० वें परमनन्द सूरि हए । इनके समय सं° ११३२ में सूखंश कौ पारिवारिक स्थिति क्षीण हो चुकी थौ । गुहू ने उनको नागौर जाकर वसने की सलाह दी श्रौर कहा कि नागौर मे तुम्हारा वड़ा भाग्योदय होगा| गुह के वचन से सूरवंशीय वामदेव ने सं० १२१० को साल नागौर में आकर वास किया 1 वहां उनको बड़ी वृद्धि हुई ॥ सं० १२२१ के वर्ष संघाति सतीदास के यहां ससाणी कुल देवी का जन्म हुआ और सं० १२२६ में वह मोरवूपाणा नाम के गाँव में श्र तंधान हो गई। सं० ११३२ में सुरवंशोय मोत्हा को स्वप्ल में दर्शन देकर देवी पुतली- रूप पै प्रकट हुईं । मोला ने कुल देवो का देवालय बना दिया। यही सुराणा को कुलमाता मानी जाती ই। द ও ४०वें पट्टथर उचितवाल सूरि से सं० ११७१ मेँ वमंधोप उचित्तवाल गच्छं हुआ । इनके प्रतिबोध पाये हुए श्राज भोस्तवाल कहे जाते हैं। ४१ वें प्रौढ भूरि से सं० १२३४ में घरंघोष पूढवाल शाखा हुईं जो श्रभी पोरवाड़ नाम से कहो जाती , ६। ४३ वें नागदत सूरि से धमंघोष नागौरी गच्छ प्रगट हुआ । सं० १२७८ में विमल चन्द्र सूरि से दीक्षा लेकर इन्होंने क्रिया उद्धार किया, दिथिलाचार का निवारण किया । सं० १२९८४ के वैशाख शुद ३ को इन्होंने भ्राचार्य पद प्राप्त किया । इन्हीं से नांगौरी गच्छ की स्थापना होती है। ५६ वें पट्ट पर शिवचंद्र सूरि हुए । सं० १५२६




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now