श्रावकाचार प्रथम भाग | Shravkachar Pratham Bhaag
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
166
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about श्री दिगम्बर जैन - Shri Digambar Jain
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्रावकाचार। {९
उछ हित न् हो सफे-प्रोपकार न हो सके तबतक सेरी जीव
विना प्रयोजन उसे क्या जगे -कयों उसकी. चाहने १ घत
एव रस परमात्माक्न रक्षण वीतराग तज्ञ मीर दितोपदेशी दै ।
निकल परमात्मा शरीर रहित नित्य सविनाशी सुखके भोक्ता
अनेतगुण मेडित परम पवित्र, निःक्रिय लोकालोकके ज्ञाता अनंत
श्रमा युक्त है।
शरीर रहित, कममलरद्वित, लत्यंत विशुद्ध सुकतात्मा नग-
तका क्त हत नदीं हो सक्ता! योर कती हतीकि कारण ईश्की
कस्पना भी बाग्माल है, क्योंकि निल्य, निरंञन, शरीर रहित,
व्याप्त (कर्ताको माननेवाले इश्वरको व्याप्त मानते हैं) से शक्ति-
मान और जनादिनिघन ईश्वर क्रिया रहित दोनेसे कि भकार
जगतको बना तक्ता हे ? व्याप्त पदार्थमे हन चकन रूप क्रिया
किस प्रकार हो सक्ती दे ! शरीर विना मूर्नीक पदार्थोक्नों कि्त
प्रकार बना सक्ता दै ! वर्योकि ईश्वर स्वयं अमूर्नीर है । अपूर्ती-
कसे मूर्तीक वस्तु फेसे उत्पन् से सक्ती ६ १ निल वस्म क्रिया
ऊँसे होठी है ! निल साङ्गान क्रिया क्यो नदीं ईश्वर
'नित्य होकर यदि क्रिया करता हतो भ्रश्य कार्ते कड क्रिप्ा
कहाँ चली जाती है १ वह नित्य ही नहीं दोगा। अनादि
वरवे सादि काये कैद हए । हैदर णनादि दै तो वह नगतके
विना कैसे कहां रहा ? क्रियाये इच्छासे होती हैं.। षके च्छा
होनेसे वह दोषी ठहरेगा । ईशंवरको किपते बनाया | सर्वे
शक्तिमान होनेसे उप्तके बताये हुए स पदार्थ सुद एके হীন
वदष्टिये ! पि! करोर इषो, कोई तेपे, गोर হতো, कोट षुवो
User Reviews
No Reviews | Add Yours...