आराधना कथा कोष | Aradhna Katha Kosh

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : आराधना कथा कोष  - Aradhna Katha Kosh

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about परमानन्द जैन - Parmanand Jain

Add Infomation AboutParmanand Jain

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
प्रथम भाग ११ समय बोद्ध-सम्प्दायवारे कदी जांच कर दी वियादान दिया करते ये । अतः मदहावोधिके धर्माचायने दोनो भाद्योकी कंडी परीक्षा लेकर, अन्य विद्यार्थियोंके साथ वोद्ध-सम्प्रदायके प्रन्थ अध्ययन करने की आज्ञा दे दी । उस समय, धर्मके सम्बन्धमें वोद्धोने इतनी धार्मिक असहिष्णुता, कट्टरता एवम्‌ अनुदारता धारण कर ली थी कि वे बिना, जांच-पड़ताल किये सबको नहीं पढ़ाते थे। अब, दोनों भाइयोंने मूर्ख चन कर विद्यासस्भ किया। उनके हृद्ये जैन-धर्मके प्रति अटल प्रेम तो था ही किन्तु बाहरमे वे वौद्ध बने रहे । दोनों भाइयों की स्मरण शक्ति इतनी तेन्न थी कि अकलंकदेव तो केवछ एक वार की सुनी हुई बातको याद कर लेते थे । निक- लंकके सामने यदि कोई अपनी बात दो बार कहे तो वह उसे याद कर लेते थे। इस प्रकार, दोनों भाई बोद्ध-धर्मकी वात सुन २ कर कौटस्थ कर लिया करते थे। अकछंक तो संस्थ और নিত রী संस्थ को पदवीसे विभूषित हो गये एक संस्थ उते कहते है जिसे, एक बारकी सुनी हुई वात यददो जाय, जो दौ वार कहत़ेसे स्मर्ण कर ले उस्ते दो संस्थ कहते हैं। इस प्रकार दोनों भांइयोंने छद्य चेपमें रहते हुए चौद्ध-घर्मके विपयमें पूर्ण जानकारी हासिल कर ली । साथ ही वहांका कोई भी माछुम नहीं कर सका कि ये दोनों छद्मवेपी बने हुये विद्याथथी हमारे धर्म-शास्त्रोंकी पोलोंका अध्ययन कर रहे हैं। किन्तु, निम्नलिखित घटनाओंके छिय्रे खत रे की घण्टीका काम किया वह यों हैं-- है सन्देह कंसे इजा ? बात या है कि एक दिन आचाय महोदय विद्यार्थियोंको शिक्षा




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now