त्रिकुटी विलास | Trikuti Vilas
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
77
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand){ १६)
जो कनिष्टो' अँगुर्लाकें समान मोटा हो, शुद्धकर कमसे
कम सातवार जिह मलकोः निंकालना । रेसा नदीं
करनेसे दांत और जिह। शुद्ध नहीं होती | मुख एक प्रकार
कादुगेन्ध आता है । फिर केशोंकों अच्छे अकार भाड़ना,
कि जूंये (लीक) न फैलजाबें,वा और.किसी प्रकारसे घुणा न
उत्पन्न हो। फिर स्नानके समय कटिसे जेघातक ग्रत्तिका
लगां स्नॉन करना स्त्री-प्रसगके पश्चात् सर्वाक्निमें स्रत्तिका
लंगा. स्नानकरंना । और ध्यान रखना, कि. जिस वस्त्र
को पहिंनेकर स्त्रीप्रसक्ल किया हो, उसको पहनेहुये स्नान
न करना, बरु उसको उतारकर दूसरे बस्त्रकों घारणकर
स्नॉन करेना) क्योंकि मंलुकी आज्ञा हैं, कि * আমান
शुध्यन्ति ”,अथोत्त जलद्दीसे “शारीरिक शुद्धि द्वोती दें .॥
-. २. मानसिकशौच~-कपट, चल, प्रपश्न, पाखणडादि
को परित्यागकर सबसे सच्चादों रहना; और शुद्ध चित्तसे
सबके सज्ञ मित्रतारखनी;और अपना कोई अर्थ अनुचित
रीतिसे लाभ न करना |. ^
सर्वैषामेव शोचानामयंशौचं परं स्मृतम् ।
योऽथ शुचिं सः शुचि नं मृद्वारि-
शुचिशुत्िः ॥ मनु० अ० ५ श्लोक १०४
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