देव और बिहारी | Dev Aur Bihari

Dev Aur Bihari  by कृष्णबिहारी मिश्र - KrishnaBihari Mishra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१ भूमिका ` १५ स्वकूपवती श्च मिष्ट माषण द्वारा अपने प्रिय पति को भौर भी वश में कर लेती है।सधुर स्वर न होना डसके किये एक चुटि है । पक शुणी ्रननान भरादमी को कर्फश स्वर॒में योलते देखकर लोग पहले रसको छजडु सममने लंगते हैं / दीरू इसके विपरीत एक निर्गुणी को भी मधुर स्वर में भाषणं करते देखकर एकाएक वे से तिरस्कृत ना सरते ! समा-समग्ज सें चक्रा श्रपने मधुर स्वर ,से श्रोताओं का भन कुछ समय के किये अपनी सुद्ठी में कर लेता है, और यदि घइ वक्का पं० सदनसोहनजी साक्तवीय फे समान पंडित भी हुआ, तो फिर कहना ही कया सोने में सुगंधवाली कट्टापत चरितार्थ होने लगती है । घोर कक्षड्ठ के समय मी एक मयुरमाषी का वचन अग्नि पर पानी के छींटे का काम करता देखा गयाहै । निदान समान पर मधुर भाषा का ब प्रभाव है। ज्लोगों ने तो इस प्रभाव को यहाँ तक माना है कि शप्को वशीकरण मंत्र से तुलना को है। कोई कपि इसी झमिप्राय को लेकर कहता है. ' कागा कार्मो लेत है ? ब्ोय्नल काको देत? ^` ५ मीठे बचन सुनाय के जग बस सें कर लेत + यहाँ तक थी इसने मधुर शब्दों का भाषा एवं समाज पर प्रभाव दिखल्ाया । पर इसारा मुख्य विषय तसो'डन मधुर शब्दों का कविता एर भ्रमाव हे 1 मापा, समाल, व्र, संगीत प्नौर कविता षो वदा घनिष्ठ संयेध दह ; इसच्िये इने संबंध की শীহী- मोटी बातें यहाँ यहुत थोड़े में कष्ट दी राह। झब आगे हम दस सति पर विचार: करते हैं कि भाव-प्रधान कान्य पर मी शब्दों का कुछ प्रमाव हो सकता है था नहीं। यदि शो सकता है, शो हसका प्रभाव हुछना से और चिधयों की अपेदा कितने महस्व का है । “ ५ . = এ




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