कुष्ठ सेवा | Kushth Seva

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Kushth Seva by रविशंकर शर्मा

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कुछ-सेवा विषय-प्रवेश : १: सत्य-संकल्प जीवन भर के लिए होते हैं। एक जीवन समाप्त होने से वे नष्ट नहीं होते । उनकी एक परम्परा हमेशा कायम रहती है। इसलिए बसे संकल्प लेनेवालों के जीवन में भी परम्परा की कड़ियाँ छोढ़ जाते हैं। गरीबों और दुखियों को सेवा करने का संकल्प भी एक सत्य-संकल्प ही है। हम जब कोई काम शुरू करते दै, तो मन भे उसका कारण दृद्ने कौ कोिद किया करते हें। लेकिन हमेशा समाधानकारक उत्तर पाना आसान नहीं होता। फिर भी निष्ठा का चल हमें आगे ले ही जाता है। कुए-सेवा के काये को विधायक कार्यों में शामिल करते समय गांधीजी के सामने और जो भी अनेक निमित्त रहे. हों, लेकिन उनके जीवन में सत्य की खोज का स्थान जितना ऊँचा माना जाय, उतना ही थोड़ा है। उनका सारा जीवन सेवा के संकल्पा से मरा था । उनसे यह्‌ अत्यंत उपेक्षित दुःखियों का काम छूट जाना असंभव था । उतके समान ही और भी उदाहरण कुष्ट-रोगी को ऊपर उठानेवालों के मिलते हैं । ईसा मसीह के नाम पर हज़ारों की संख्या में मिशनरी असीम सेवा-भाव और अनेक कष्ट सहते हुए भी इस काम को कर रहे ই। 'फादर डेमियन' की कुर्बानी मानव-हृदय भूल नहीं सकता । हम कार्य कर्ताओं के सामने भी यह कार्य करते समय यही दृष्टि होनी चाहिए कि यह्‌ काम




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