सेवा पथ | Seva Path

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Seva Path by इंद्र चन्द्र नारंग - Indra Chandra Narang

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दृश्य ] . पहला झंक ् श्रीनिवास--फिर कुछ कद्दों भी ? दीनानाथ--मैं तुम दोनों को 'अलुगृददीत हूँ, पर, साई, में झपने ही टूटे-फूटें सेवा-पथ पर चलूँगा । [ परदा गिरता है ) दूसरा, हश्ब-- स्थान---श्रीनिवास के मकान का दालान ससय --तीसग पहर [ दालान के पीछे दीवाल है । दोनों श्रोर दो खंगे हैं । कोई दरवाजा या खिड़की नहीं है । सरला श्रीर कमला का प्रवेश । दोनों की श्रवस्था लगभग २३ वर्ष की है । सरला साँवले रंग को पर साघारणतया सुन्दर ख्री. है । कमला मौरवर्ण की रूपवती रमणी दै । सरला चहुमूल्य वल्न श्र श्राभूषण धारण किये हुए है । कमला के वल्न रफेद खादी के हैं, हाथों में काँच की एक-एक चूड़ी के ऑ्तिरिक्त शरीर पर श्र कोई 'श्राभूषण नहीं है । ] कमला--चार घर्प वीत गये, सरला, इसी प्रकार कष्ट पाते हुए लगभग चार बप वीत गये । जब बीं० ए० पास हुए. तव विवाह हुआ था। ाशा थी एम? ए० पास होने पान या तो प्रोफेसर हो जायेँगे था एल०-एल०' ची० पास कर चकोल । हम लोग भी चगीचे ओर नौकरों से ' घिरे-घिराये बंगले में रहेंगे। पढ़े हुए सभ्य मतुष्यों समान हम लोगों को भी वेश-भूपा आर खाना पीना होगा । मोटर में वायुसेवन होगा आर व्यायाम के लिए टेनिंस । जब चच्चे होंगे; तब उन्हें आया खिलायेंगी आर छोटो-छोटी गाड़ियों में घुमाने ले जॉयेंगी । . पाहुरों की ्यावभगत होगी आर मित्रों को प्रीतिभोज, दिये जायेंगे । पर ' भाग्य में तो ओर ही कुछ बदा था । एम० ए० पास हुए भी तो दो वर्ष होते हैं, पहले तो जेल चले गये झौर जेल से लोटे भीं इतना' समय बीत॑ गो पर मी 'भीं उन्हें कुंडम्वियों के कंष्टों की चिंता नहीं. । «




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