हिन्दी उपन्यासों में नायिक की परिकल्पना | Hindi Upnyaso Me Nayika Ki Parikalpana

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Hindi Upnyaso Me Nayika Ki Parikalpana by सुरेश सिन्हा - Suresh Sinha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पूद पोडिका | १८३१ में प्रथम वार भारत मे शिक्षा के प्रति भ्रपनी रुचि प्रदक्षित करत हुए शिक्षा प्रशाली के पुउगठन वे लिए एक लाख रुपया स्थीहृत क्या । षष्ट है कि भारत जैसे बद्दे देश के लिए इतनी कम राशि सन्तोप प्रद न थी । परिस्ामस्वरूप হিশা- प्रसार के सम्बंध में शासन द्वारा भ्रपनी चिन्ता प्रकट करने के अतिरिक्त कुछ भी अगति न हो सकी, पर यह स्थिति शीघ्र ही परिवर्तित हुईं । सन्‌ १८३४ ई० में लाड मैकाले ने एक याजना प्रस्तुत कर भारतीय स्कूल और कानेजा मे टिक्षा का माध्यम प्रग्मजों कर द॑ने का सुभाव दिया, जिसे सरकार मे तुरत हो स्वीकार कर लिया । इससे अग्रज्जी क महत्व में वृद्धि हुई। इसके श्रतिरिदतत उस समय सरकारी नौकरियों मे श्रग्रजी शिक्षित व्यक्ितया का ही प्रवश सम्भव था, जिसके कारण भी अग्रजी के पठन-पाठन प्रति भारतवासियां वी रुचि विवसित हुई । परिणामस्वर्प अग्रेणी स्कूलों वी सस्था म॑ झीघ्र ही वृद्धि हुई । १८५५ तक भारत में १५१ झ ग्रेजी কয়লা की स्थापना हा उुकी थी प्र प्रजी निवा प्रसार को राजा राम मोहनराय (१७७४- १८३३ ई०) से भी बल प्राप्त हुआ । उदोन भपन एक मित्र उविड हेयर क' साथ कलकत्ता में एक प्र प्रज्ञी स्टूत की स्थापना की, जिसमे भ॒ग्रजी शिक्षा की आवश्यकता पर बल दते हुए अग्रजी शिक्षित लोगा को तथार क्या गया । वह वर्ग धीरे घीर सारे देश मे फलता गया! । दस प्रश्नर यद्यपि भारत मे नवीन निक्षा प्राय १८थी शताष्डीते ही प्रारम्भ हो गई थी, पर उस प्रगति वास्तव म श्वौ दत्तादीम हौ प्रारम्भ हुई। ब्रिटिश अधिरारियां की शिक्षा प्रसार की यह मावना शास्तन व्यवस्था में अधिकाधिक रिक्षित व्यक्तिया को स्थान दवर भ्रपनौ स्थिति सुदढ़ करते वी चिन्ता पर ही भ्राधारित भी । ज्या ज्यो उनके प्रशासव वा क्षत्र बढता जा रहा था, इगलड से विक्षित ब्यक्तियां को लावर उह घासत-व्यवस्था का भार सौपना सम्भव न रह गया था । उच्च षदा पर श्रीर प्रय उत्तरदायी पदों पर ता उाहाने स्‍भ ग्रढा का स्थान प्रदान विया था, पर उहें अधिक सव्या म शिक्षित बलक चाहिय थे । इसलिए भारतीया को विक्षित कर भ्रपनी झावश्यवता दा पूरा वरने की योजना बबाई भौर अग्रज्ी शिला भ्रसार वे' प्रति भ्रपती प्रत्यधिक रुचि प्रदर्शित की । प्रत यट स्पष्ट है विः इस रचि में सदभावना नहीं, वरन्‌ स्वाय पूर्ति की इच्छा थी । १८५४ ई० चाल्सवुद्ध ने सरकार षे सम्मुख एव योयना प्रस्तुत बर प्रायमिव्‌ निका की भ्राव- इयकता पर यल द्विया 1 भ्रभी तङ সাঘলিন विभा की भ्रोर्‌ विसे ध्यान कही दिषा जाता था, श्रौर वॉलेजा में ही अग्रजी विक्षा के प्रचलन पर ज्ञोर दिया जाता था ॥ १८८० ई० म हटर फमीशन ने মী ्राथमिक शिला पर बल देते हुये प्राइवट स्क्‍ला १ सर जॉन करमिग द्वारा सम्पादित साइन इंडिया ए कोआ्रॉपरेटिव सर्व, (लन्दन १६३१), ५० १२२ २ मेहा, ऐजूवेशन धॉव इडिया, (१६२६ ६०), लदन, पु० २०-२१




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