हिन्दी उपन्यासों में नायिका की परिकल्पना | Hindi Upanyaso Me Nayeka Ki Parikalpana

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कै हिन्दी उपन्यासो में नायिका कौ परिकल्पना एक द्यासन व्यवस्था को समाप्त कर उसके स्थान पर दूसरी थासन व्यवस्था की स्वापना के परचात्‌ प्रत्येक दिशा में परिवतत होना स्वाभाविक है । भारत में सी त्रिटिद घासन की स्थापना के साथ ही भिन्न दिशाग्रों में परिवतेंन एवं नवीन व्यवस्था लक्षित हुई । यहाँ की विश्व खल थिक्षा-व्यवस्था में परिवर्तन, नवीन वैज्ञानिक श्रावि- प्कारों का प्रचलन, समाचार-पत्रों का प्रकाशन, नवीन श्राधिक संगठन श्रदि इसी दासन व्यवस्था में परिवर्तन के परिणाम थे । पर इस परिवर्तन की पृष्ठभूमि में भारत की स्थिति सुदृढ़ करने श्रववा भारत का निर्माण कर एक कल्याणकारी राष्ट्र का रूप प्रदान करने की भावना नहीं, वरन्‌ स्वयं श्रपनी दयासन-व्यवस्था को सुदुद्ता प्रदान करने एवं श्रपने निजी स्वर्यो को पूणं करने की सावना क््यायील थी । ब्रिटिया श्रघिकारियों पर झासन का जो महती उत्तरदायित्व था, उसके सफल निर्वाह के लिए ही उन्होंने प्रत्येक शेत्र में परिवर्तन करने की योजना बनाई थी । नवीन शिक्षा परिवर्तन की दिथा में प्रधम चरण थिक्ना प्रणाली का पुनर्गंदन था । मुनन यास्तन के पतन के पदचात्‌ दै में को केन्द्रीय गासन सत्ता न यी1 कम्पनी का यासन स्यापित होने श्रीर उसकी व्यवस्था सुदु दोनेमे च्रनैकः वुं लग गये । इस वीच रिक्षा व्यवल्याकी शरोर चियोप ध्यान नहीं दिया जा सका, आर प्रारम्न कम्पनी के अधिकारियों की भी इस दया में विशेष रूचि न थी । दिक्षा प्रसार के फलस्वरूप चेतना के प्रसारण से श्रमरीका में ब्रिटिदया दासन समाप्त हो चुका था कम्पनी के अधिकारियों को भारत में भी इस घटना की पुनरावृत्ति की श्रादंक्रा चरी, अत्त: थिक्षा प्रसार के भ्रति उदासीन रहना टी उन्दं शरेयत्कर प्रतीत हप्र । कम्पनी ने १७६१ में कलकत्ता मे पक फार्सो मदना तथा कासी में एक संस्कृत विद्यालय की <, स्यापना कर्‌ ही अपने कर्तव्य की इतिश्री समस्या 1 वाद में त्रिदिव पालिया्मेट ने प! [. श--पिछले पृण से ज्चाने का- (ष) तरार स्ीऽ मजूमदारः एन एडवर्ड दिस्टरो श्रव इंडिया, (१६५३), लंदन 1 (ड) जे० रेम्ज्े म्योर: मेकिंग झॉव ब्रिटिदा इण्डिया, (१७५६ से १८५८ तक) ; मैनचेस्टर, १६०४ । (च) उञ्चरु ए० चे° श्राचवोल्ड: झाउट लाइन्स झाँव इण्डियन कॉस्टीट्युशनल हिस्ट्री, (१८२६), लन्दन 1 (छ) ए० युचुफ श्रलीः द म्तिग अरव इन्दवा, (१६२५), लन्दन 1 {ज) ए० यूसुफ त्रली- ए कल्वुरल हिस्ट्री भ्रव इन्डिया, ( १६४०}, लन्दन ॥ (ऋ) प° जवाहरलाल नेहङ-- हिन्दुस्तान कौ कहानी, ( १९८५), इलाहावाद 1 (ट) पट्टामिसीतारमैया: कांग्रेस का इतिहास, (१६४६) , दिल्‍ली 1 . (5) मोहनदास कर्मचन्द गावीः आत्मकया, (६९४९), दिल्‍ली 1




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