साहित्य शास्त्र के नये प्रशन | Sahitya Shastra Ke Naye Prashan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
208
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कविता केमूलखोत. ... ५
उक्त दोनों बातें पुनः डा० उपाध्याय के इस सिद्धान्त में परिणमित
हो जाती हैं--'अतः यह निश्चित है कि साहित्य में या कला में हम सबको
छोड़ सकते हैं पर व्यक्ति को नहीं छोड़ सकते । व्यक्ति किसी न किसी भांति
साहित्य में भा हो जाता है। ऐसा भी सम्भव है कि लेखक व्यक्ति को
इस बात का पता भी न हो और वह चाहता भी हो फि उसके
व्यवितत्व के सम्पर्क से उसका साहित्य लांछित व हो ।”? इसका उन्होंने
एक बहुत अच्छा उदाहरण दिया है । कालिदास के रघुवंश में दिलीप की गो-
सेवा का वर्णन है 1 गंगा के उद्गम के पास हिमालय की गुफा मेँ नन्दिनी गाय `
हरी-हरी घासें चर रही थी, सिंह ने उसे दबोच लिया । दिलीप ने हस्तत्तेप
किया । तब सिंह ने कहा--गाय का छुटकारा तभी सम्मव है जब तुम इसके
बदले में श्रपने को मेरे भोजन के लिए अपित कर दो । दिलीप तैयार हो
गये । समस्त राज्य की प्रजा का रक्षा-मार त्याग कर, राज्य के गौरव का
लोभ छोड़कर उन्होंने केवल एक गाय की रक्षा के लिए अपने को सिंह के लिए
भेंट कर दिया | भ्र्थात् साहित्य की प्रक्रिया में व्यक्ति का वहुत महत्व होता
है ।*> साधारण समीकरण तो यही समभा जाता है कि महान् वस्तु ८ सहान्
प्रभाव । पर साहित्य में इसके विपरीत यह् मी हो सकता है महान् प्रभाव =
महान् वस्तु ।'3 डा० उपाध्यायःके सिद्धान्त पर कालिदास के रघुवंश के उक्त
प्रसंग को विस्तार में इस प्रकार समा जा सकता है । सश्नाट दिलीपने गायके
लिए त्याग किया । उनके लिए गाय का महत्व साम्राज्य से भी श्रधिक था।
दिलीप महान् वस्तु हुए । उसका महाद् प्रमाव यह पड़ा कि गाय की रक्षा
श्रौर उसकी सेवा समाज में सर्वोपरि स्वीकार कर ली गयी । पर यह दिलीप
की महानता नहीं थी । कवि कालिदास महान् होकर दिलीप में समाविष्टर्ह।
कालिदास का यह् ॒व्यक्ति-उन्मीलन भी परम्परया मगवानु कृष्ण को गो-
रक्षा से अनुप्राणित है, (कदाचित् कृष्ण के गोरक्षा-आदशे की काव्य में प्रथम .
झरभिव्यक्ति उक्त रूप में कालिदास ने ही की है 1) श्र्थाव् कालिदास पहले
कष्ण में समाविष्ट होते हैं श्रौर फिर दिलीप में । काव्य में कवि का ही
व्यक्तित्व है पर उसका निर्माण दूसरे से हुआ है और अभिव्यक्ति भी दूसरे में
हुई है । कवि दो बार परकायश्रवेश करता है, एक वार अपने निर्माण के.
लिए, दूसरी बार अपने काव्य-निर्माणण के लिए ) यह् मी एक विशेष बात है
कि उक्त व्यक्तित्व तीनों पातो मे उत्तरोत्तर महाव श्रौर स्वच्छ होता गया है }
৭. साहित्य सथा साहित्यकार, ए० ५६ পর
| % वही, ए० ५१
१. वष, ९०५२ ` > क
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