साहित्य शास्त्र के नये प्रशन | Sahitya Shastra Ke Naye Prashan

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Sahitya Shastra Ke Naye Prashan by देवराज उपाध्याय - Devraj Upadhyay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कविता केमूलखोत. ... ५ उक्त दोनों बातें पुनः डा० उपाध्याय के इस सिद्धान्त में परिणमित हो जाती हैं--'अतः यह निश्चित है कि साहित्य में या कला में हम सबको छोड़ सकते हैं पर व्यक्ति को नहीं छोड़ सकते । व्यक्ति किसी न किसी भांति साहित्य में भा हो जाता है। ऐसा भी सम्भव है कि लेखक व्यक्ति को इस बात का पता भी न हो और वह चाहता भी हो फि उसके व्यवितत्व के सम्पर्क से उसका साहित्य लांछित व हो ।”? इसका उन्होंने एक बहुत अच्छा उदाहरण दिया है । कालिदास के रघुवंश में दिलीप की गो- सेवा का वर्णन है 1 गंगा के उद्गम के पास हिमालय की गुफा मेँ नन्दिनी गाय ` हरी-हरी घासें चर रही थी, सिंह ने उसे दबोच लिया । दिलीप ने हस्तत्तेप किया । तब सिंह ने कहा--गाय का छुटकारा तभी सम्मव है जब तुम इसके बदले में श्रपने को मेरे भोजन के लिए अपित कर दो । दिलीप तैयार हो गये । समस्त राज्य की प्रजा का रक्षा-मार त्याग कर, राज्य के गौरव का लोभ छोड़कर उन्होंने केवल एक गाय की रक्षा के लिए अपने को सिंह के लिए भेंट कर दिया | भ्र्थात्‌ साहित्य की प्रक्रिया में व्यक्ति का वहुत महत्व होता है ।*> साधारण समीकरण तो यही समभा जाता है कि महान्‌ वस्तु ८ सहान्‌ प्रभाव । पर साहित्य में इसके विपरीत यह्‌ मी हो सकता है महान्‌ प्रभाव = महान्‌ वस्तु ।'3 डा० उपाध्यायःके सिद्धान्त पर कालिदास के रघुवंश के उक्त प्रसंग को विस्तार में इस प्रकार समा जा सकता है । सश्नाट दिलीपने गायके लिए त्याग किया । उनके लिए गाय का महत्व साम्राज्य से भी श्रधिक था। दिलीप महान्‌ वस्तु हुए । उसका महाद्‌ प्रमाव यह पड़ा कि गाय की रक्षा श्रौर उसकी सेवा समाज में सर्वोपरि स्वीकार कर ली गयी । पर यह दिलीप की महानता नहीं थी । कवि कालिदास महान्‌ होकर दिलीप में समाविष्टर्ह। कालिदास का यह्‌ ॒व्यक्ति-उन्मीलन भी परम्परया मगवानु कृष्ण को गो- रक्षा से अनुप्राणित है, (कदाचित्‌ कृष्ण के गोरक्षा-आदशे की काव्य में प्रथम . झरभिव्यक्ति उक्त रूप में कालिदास ने ही की है 1) श्र्थाव्‌ कालिदास पहले कष्ण में समाविष्ट होते हैं श्रौर फिर दिलीप में । काव्य में कवि का ही व्यक्तित्व है पर उसका निर्माण दूसरे से हुआ है और अभिव्यक्ति भी दूसरे में हुई है । कवि दो बार परकायश्रवेश करता है, एक वार अपने निर्माण के. लिए, दूसरी बार अपने काव्य-निर्माणण के लिए ) यह्‌ मी एक विशेष बात है कि उक्त व्यक्तित्व तीनों पातो मे उत्तरोत्तर महाव श्रौर स्वच्छ होता गया है } ৭. साहित्य सथा साहित्यकार, ए० ५६ পর | % वही, ए० ५१ १. वष, ९०५२ ` > क




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