बुद्ध चरित्र | Buddh Charitra

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Buddh Charitra by दुलारेलाल भार्गव - Dularelal Bhargav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सूचना भ इश्य समाप्त हुआ । वह जल फिर जांवों से पूर्ण हुआ, और उसी जल पर दष्ट की स्थापना हुई । हे कल्याणी, इस तरह असंख्य जलचर जंतुओं के साथ मैंने जल में विचरण और मत्स्य-अवतार के द्वारा वेदों का उद्धार किया | उसके वाद, अन्य समय, सागर के भीतर, मे कच्छप के रूप से प्रकट इच्मा । पीठ पर मंदराचल-सहित पृथ्वी को धारण किया । फिर वाराह-अवतार लेकर प्रलयकाल में दाँत पर पृथ्वी को उठा- कर सागरतल से ऊपर लाया । है पुत्री, फिर त्रिलोक शौर चौदह भुवन की रचना इई । उस समय कौन जानता था कि फिर इस सृष्टि का विनाश संभव है ? उसके उपरांत दैत्यगण तप करके बली इए । उनके प्रताप से न्याकुल देव- गण भय के भारे कौपने कगे । देवगण स्वर्ग से भाग गए, ओर किसी तरह दैत्यों को हरा नहीं सके । तब उन्हें उनका अधिकार दिलाने के लिये मेने भयानक नृर्सिह-रूप धारण किया । दया--प्रभु, में आपकी नर-लीला सुनना चाहती ह । दे नारायण, आप समय-समय पर मनुप्य-शरीर धारण करके पृथ्वी पर क्‍यों बिचरते हैं ? आपके किस अवतार में किस .बल का अयोजन हुआ :£ हे निरंजन, में यह सब सुनने के लिये श्त्यंत उत्क॑टित दो रही हँ । मैने प्रलयकाल का सागर नहीं देखा, और इसी कारण प्रलयसागर मे आपने जो लीलाएँ




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