तेरापंथ-मत समीक्षा | Terapanth-Mat Samiksha
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
98
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)तेरापंध-मत समौक्षा | १३
राजाने, उस्र छोकको ओर उसके अथैको अपने हद्-
यम स्थापन कर लिया। राजाके पास काशी-कांची-नदीया-
शान्तिपुर-भट्टपर्क्कष-मिथिक्ष-काइ्मीर तथा गुजरातसे निरन्तर
पंडितं अनि रुगे । ओर अपनी २ विद्वत्ता राजाकों दिखाने छगे।
जो पंडित राजसभामे आया, उसके सामने वही “शान्ताकारं पश्न-
निलयं › वाला शोक धर दिया। इस छोकका अथे सब पंडित
अपनी २ बुद्धयनुसार करने कगे । परन्तु मनमाना अथं नहीं
करनेसे राजा प्रसन्न नहीं होता था। বিলাই রিল ভীম
सेडान्वय-दंडान्वयसे अथे करने रगे, तथा प्रङ़ृति-भर्यय वगै-
रह सब पृथक् पृथक् दिखा करके अपना पांडिलय दिखाने रगे,
परन्तु राजाकी प्रसन्नता न होनेके कारण वे विना दक्षिणा
ही अपना २ मांगे लेने लगे । एसे सेंकडों पंडित आए,।/ परन्तु
राजा सवका अपएमानही करता रह। । राजा उस धूतेषुरोहितके
उपर अधिकाधिक प्रसन्न होने छा, और उसकी जो बारह
हजारकी आमदनी थी, वह बढाकर चोवीस हजारकी कर दी ।
राजाके मनमें यह विश्वास हो गया कि-सारे देशम यदि कोर
पंडित है तो पुरोहितदी है।
एक दिन एक ब्राह्मणक्रा रटका पुरोहितकी स्ीकी
सेवा करने ङ्गा ! उसने एक दिनि बात बनाकर कहाः-एक
“छोक ऐसा है कि/ जिसका अर्थ अपने राजा ओर आपके पति
ये दोनोंही जानते हैं। तीसरा कोई जानताही नहीं हे | क्या .
आप उस श्छोकका अथं नहीं जानते हैं ' | स्लीने यह बात
मनम धारण करणी । राजीको जब पुरोहितमी आए, तब
झटसे स्लीने पूछाः- राजा जो शोक सब पंढितोंको पूछता
है उसका अथे क्या है ? ? पुरोहितने कहाः- तू समझती नहीं
User Reviews
No Reviews | Add Yours...