तेरापंथ-मत समीक्षा | Terapanth-Mat Samiksha

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Terapanth-Mat Samiksha by विजय धर्मसूरी- Vijay Dharmasuri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तेरापंध-मत समौक्षा | १३ राजाने, उस्र छोकको ओर उसके अथैको अपने हद्‌- यम स्थापन कर लिया। राजाके पास काशी-कांची-नदीया- शान्तिपुर-भट्टपर्क्कष-मिथिक्ष-काइ्मीर तथा गुजरातसे निरन्तर पंडितं अनि रुगे । ओर अपनी २ विद्वत्ता राजाकों दिखाने छगे। जो पंडित राजसभामे आया, उसके सामने वही “शान्ताकारं पश्न- निलयं › वाला शोक धर दिया। इस छोकका अथे सब पंडित अपनी २ बुद्धयनुसार करने कगे । परन्तु मनमाना अथं नहीं करनेसे राजा प्रसन्न नहीं होता था। বিলাই রিল ভীম सेडान्वय-दंडान्वयसे अथे करने रगे, तथा प्रङ़ृति-भर्यय वगै- रह सब पृथक्‌ पृथक्‌ दिखा करके अपना पांडिलय दिखाने रगे, परन्तु राजाकी प्रसन्नता न होनेके कारण वे विना दक्षिणा ही अपना २ मांगे लेने लगे । एसे सेंकडों पंडित आए,।/ परन्तु राजा सवका अपएमानही करता रह। । राजा उस धूतेषुरोहितके उपर अधिकाधिक प्रसन्न होने छा, और उसकी जो बारह हजारकी आमदनी थी, वह बढाकर चोवीस हजारकी कर दी । राजाके मनमें यह विश्वास हो गया कि-सारे देशम यदि कोर पंडित है तो पुरोहितदी है। एक दिन एक ब्राह्मणक्रा रटका पुरोहितकी स्ीकी सेवा करने ङ्गा ! उसने एक दिनि बात बनाकर कहाः-एक “छोक ऐसा है कि/ जिसका अर्थ अपने राजा ओर आपके पति ये दोनोंही जानते हैं। तीसरा कोई जानताही नहीं हे | क्‍या . आप उस श्छोकका अथं नहीं जानते हैं ' | स्लीने यह बात मनम धारण करणी । राजीको जब पुरोहितमी आए, तब झटसे स्लीने पूछाः- राजा जो शोक सब पंढितोंको पूछता है उसका अथे क्‍या है ? ? पुरोहितने कहाः- तू समझती नहीं




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