आध्यात्मिक एवं नैतिक मूल्य [भाग २] | Adhyatmik Avam Naitik Mulya [Part 2]

Adhyatmik Avam Naitik Mulya [Part 2] by अज्ञात - Unknown

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about अज्ञात - Unknown

Add Infomation AboutUnknown

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
आर््यात्सिका एवं गैतिक मुल्यप्ा (150) पद के ताउसी तख्त को जीत लेता है। मधुरता सबका मीठे वचनों से अभिवादन करना, मीठे वचनों द्वारा ही उनसे वार्तालाप में प्रवृत्त होना और उन द्वारा कोई अनुचित कार्य होने पर भी शिष्ठ भाषा का प्रयोग करना, मधुरता रूपी गुण को धारण करना है। मधुरता मनुष्य की सज्जनता, सहिष्णुता, विशाल हृदयता और व्यक्तित्व की उच्चता का प्रतीक है। मधुरता द्वारा ही मनुष्य दूसरे को आह्वाद देकर उसे अपना बना लेता है। यह वह हथियार है जिसके सामने लोग अपने हथियार डाल देते हैं। मनुष्य के मन को जीतने का यदि कोई उपाय है तो वह मधुरता और नम्रता ही है। प्रेम के बिना मधुरता नहीं हो सकती और निःस्वार्थता के बिना प्रेम नहीं हो सकता और कल्याण भावना के बिना निःस्वार्थता नहीं हो सकती और कल्याणकारी शिव बाबा को याद किये बिना कल्याण वृत्ति नहीं हो सकती। अत: सच्ची, कृत्रिम नहीं और स्थाई मधुरता योगावस्था की ही सूचक है क्योंकि जैसे शहद, शहद के छत्ते से आती है, मधुर रस, मधुर फल से ही प्राप्त होता है, सुगन्धि, सुरभियुक्त पुष्ण से ही प्राप्त होती है वैसे ही अलौकिक मधुरता, मधुरता के पुंज परमात्मा ही से प्राप्त होती है। मधुरता के पीछे सन्तुष्ठता भी छिपी रहती है और शान्ति भी। मधुर अवस्था ही मन की एक ऐसी अवस्था है जो योग रूपी बीज बोने के वैसे ही अनुकूल है जैसे कि शोरे के बिना ज़मीन। तो जबकि मनुष्य को लोक- पसन्द बनना है और प्रभु-पसन्द भी तो मनुष्य को मूटुभाषी और प्रसन्न वदन- हर्षित मुख होना चाहिये, क्योंकि मधुरता और सम्मानपूर्वक व्यवहार करने वाले को ही सदा के लिए मधुरता और सम्मान से पूर्ण स्वर्ग में स्वराज्य मिलता है, यहाँ तक कि उनकी मूर्तियों को भी लोग जन्म-जन्मान्तर बूंदी, बर्फी आदि मिठाई का भोग लगते हैं। हुनर है रु हा, रन पार रिनाए पक पा पथ डक. ८ न नदी: “० हि ड्ू असर: श् कि रे श्ल




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now