जैनतत्वादर्ष नामक ग्रंथ | Jaintattvadarsh Namak Granth
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
41 MB
कुल पष्ठ :
642
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१४
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११
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५०
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१४
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अतुकमणिका, ५
बीजा नैयायिक ददीनना स्वरूपभां नैयायिक मतना गुरुना
लिंग, तेना देवना अढार अवतारना नाम, प्रत्यक्षादि चार
परमाण, अने सोल पदार्थना नाम, तथा तेना तकेशाख्रोनानाम, १४०
वेशेषिक मतनुं संक्षेपथी स्वरूप, १४१
चोथा सांख्यमतनुं स्वरूप घएं विस्तारथी. १४१
पांचमां मीमांसक मत, तेनुं बीजुं नाम जेमिनीय, तेनुं स्वरूप, १४०
नास्तिक चार्वाक दशन तेने लोक वाममार्गी कहे बे ए ना-
स्तिक व्रीन षट्दरोनमां गणातुं नथी, तेवं स्वरूप, तथा आरा
मत बृहस्पति नामना पुरुषथी उत्पन्न. थयेल ठे, तेनी कथा. २५१
प्रथम बोरूमतमां पूर्वपिर विरोध तथा ते मतुं खंडन, २६०
बीजा नैयायिक मतमां पूर्वापर विरोध, तथा ते मतमु खंडन. २६५
त्रीजा वैशेषिक मतमु खंडन, १७४
चोथा सांख्य मतुः खंडन. १७२
पांचमां मीमांसक मतना खंडनमां बेदांतीयोना बह्म (अष्टेत)
नु खंडन तो प्रथमज इश्वरवादसां करी चुक्या ढीये, परंतु तेनं
अपर नाम जैमिनीय मत ठे. तेनु स्वरूप तथा खंडन. १०५
वेदोमां जे यङ्ादि करीने हिंसा करवी लखेल् ठ, तेनं खंडन. २०५
चार्वाक ८ नास्तिक ) मतुं पुर्वैपक्ध उतरप् पर्थक खंडन, १९७
॥ पाँचमा परिह्ेदमां शुरू धर्मेतत््वनुं खरूप कढेल के, तेन अनुक्रम णिका ॥
२
र्
द
४
नव तत्वमां पथम जीव तत्वनुं स्वरूप, १०६
प्रथ्वी शादि पांच स्थावरोमां जीवस्व सिख करेल উ.. १०८
वीजा अजीव तस्वना स्वरूपमां धर्मास्तिकाया देक व्यो कण २२१२
त्रीजा पुण्य तसना स्वरूपमां पु उपाजन करवाना नव प्र
कार, तथा ते बेंताक्षीरा प्रकारे जोगववामां रावे 3, तेना नाम २१३
चोथा पाप तवना स्वरूपमां कर्माजाव वादी नास्तिक तथा
वेदांत कदे ठे के, पुण्य पाप जे ठे, ते .आकादाना फुलनी मा-
फक असत् ठे तथा तेना फलन नोगववानुं स्थान जे स्वगे अने
नरक ते पण नथी, ए प्रमाणे कथन करवावाल्लानुं निराकरण
` . करीने पाप अहार प्रकारे बंधाय 3, ने ते ब्यासी प्रकारे
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