दीर्घायु | Dirghayu
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
374
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about गणेशदत्त शर्मा गौड़ - Ganeshdatt Sharma Gaur
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)९ টি দাত
ক ১ $ কহ
करना एक प्रफारसे आपुनी दी कमजोरी प्रकट करना है। इस
तरहकी निधेलता जबतक रहेगी तवतक मजुष्यमें सच्ची मान-
चताका होना विलकुल असम्धव है। यहाँपर एक प्रश्न यह
उठ सकता है कि क्या परमात्मासे भी नहीं डण्ना चाहिये १”
इसका उतर यही है कि परमात्मा कोई भयका पदार्थ नहीं है,
उससे उरनेकी कोई आवश्यकता नहीं है। घद्द तो न्यायाधीश
है-जो जैसा करेगा, उसे पैसा ही फल देगा। घहाँ न तो रिंझा-
यत होगी और न अधिक दण्ड हो मिलेगा इसलिये परमात्मासे
भय फरनेकी कुछ भी जरूरत नहीं हैं। वेद कद्दता है--
“उ० स नो वन्धुजेनिता स विधाता धामानिवेद् भुवनानि-
विश्वा 1” यजु० अ० ३२ मे० १०
(खः) वह परमात्मा (नः ) हमारा (वंघुः) भाई
(जनिता ) पिता (सः) बह ( विधाता) इच्छित कार्योका
पूणं करनेवाला ३।
ड विहष्ठो नाम ते पिता मदावति नामते माता!
स हि न त्वमसि यस्त्वमात्मानमावयः 1” अथव ६ 1१६२
हे परमात्मन् ( ते ) तेरा ( बिद ) कंपानेवाखा ( पिता)
पिता ( नाम ) नाम है ओर (ते ) तेरा ( माता ) मा (मदवती )
प्रसन्नता देनेवाला (नाम ) नाम हैं. (सः) वह (हि) ही
( त्वम्) तू ( असि ) है ( यः) जिस (त्वम्) तूने (आत्मानम)
हमारे आत्माकी ( आवयः ) रक्षा की हैं
भस नः पिता जनिता स उत वन्धुः |» अथ २।९।३
User Reviews
No Reviews | Add Yours...