गृहस्थ जीवन | Grahastha Jeevan

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Grahastha Jeevan by तिलक विजय पंजाबी - Tilak Vijay Punjabi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भावोका फोटो बालक के अन्तः्करण में पड़ता रहता है । इस प्रकार माताके दरपक आचार विचारका बालक के हृदय पर सदा काल पड़ता दी रदता है । विद्येषतः स्तनपान कराते समय बालक के अन्तःकरण में माताके विचार की गदरी छाप पड़ती है । इस लिये बालकको स्तन पान करते समय माताको अच्छे धेष्ठ विचार रखनेकी जरू- रत है । माता जैसा मनमें सोच विचार करती है वैसा दी दिक्षण चदह्द बालक अपनी प्यारी माताकी गोदमें पड़ा पड़ा स्तनपान के साथ दी ग्रहण कर छेता है । अथौत्‌ माताकी गोदमें स्तनपान करता हुआ थालक मात्र अपने दारीरका ही पोषण करता है इतना दी नहीं किन्तु चहद सचे प्रकारका मानसिक शिक्षण भी साथ ही ग्रहण करता हैं । माता अपने पुत्रकों स्तनपान कराती हुई नीति या अनीति, सदाचार या दुराचार, सत्य या असत्य, दया-प्रेम या क्रूरता, सरलता या दम्भता इत्यादि सदयुणों या दुमुणोका भी पान कराती है । महान्‌ बुद्धिका शिक्षण भी माता अपने युत्रको गोदमें दी दे सकती है । माता अपने पुत्रको जिस विद्या, कला कौदाल्य किंवा घंघे में निपुण बनाना चाहती हो यदि उस विच- थका माता स्थत। उस समय अध्ययन करती दो या उस विषय- का चिन्तन करती हो, उस विषयक अध्ययन वा चिन्तन में दी उसका चित्त छगा हुआ हो और उस समय यदि माता अपने पुतरको स्तनपान कराती हो तो अवधद्यमेव उस अध्ययन या चिन्तन का पक पक परमाणु माताके स्तन-दूधके द्वारा उस बालक की रग-रगमें व्याप्त हो जाता है । अतः माताकों जिस कलाकौदाल्य में था जिख दाम अपने बालक को निवुण बनाना हो उस दास या कला, व्यापार या इुन्नर तरफ अपनी बुद्धिका व्यापार, मनोवूत्ति एवं इन्दिय व्यापार रखना चाहिये । इसमें उसकी उस मनोवूत्ति आदि- का संस्कार उसके दारीरम रही हुई सातों दी घातुओं में संचरित होकर उसके स्तनों में रहे हुये दूधके बिन्दुओ तक पहुंचता है । अथोत्‌ उसके दूधके प्रत्येक बिन्दुम उसके स्वभाव की एवं खिसकी श्रुति प्रवेश करती दै और उस दूधको पीनेबाले की रग रयमे




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