मानव समाज | Manav Samaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भाषाकी उत्पत्ति ] समाजका विकास ष्र जिस तरह हाथके मुक्त होनेसे श्रमशक्ति चढतो देख सानवने उछके श्रौर भी दजारों उपयोग ढढ़ निकाले, उसी तरह एक बार जब सदयोगके लाभको देख लिया, तो उसे स्वीकारकर वह श्रागे बढ़ने- में प्रयत्नशील हुश्रा । इस प्रकार मनुष्यको पैदा होते ही बना-बनाया समाज नहीं सिल गया ; बल्कि प्रकृतिको पराजितकर भोग-उत्पादन- के लिये सहयोगी श्रम श्र द्रात्म-रक्षाके लिए सहयोगी संग्राम दी थे, जिन्होंने मुक्त दाथकी बढ़ी हुई शक्तिको श्रौर बढ़ाकर मनुष्यकों समाज चनानेकी प्रेरणा की । (२) भाषाकी उत्पत्ति--समाजमें बद्ध हो जानेपर, मनुष्यके पास उसके बढ़े हुए काम, उनके लाभ, शोक, दषं श्रादि कितने ही भाव मनमें श्राते, उन्हें वह श्पने सहचरकों सुनाता । अब उसकी '्वनियोंकी सख्या बढ़ने लगी, श्रौर ध्वनि-यंत्रमें धीरे-धीरे परिवत्तेन होने लगा ।' वायुनाड़ी का शब्द-बकक्‍्स पेचीदे छुल्लॉवाला चनने लगा, मुखके श्रवकाश श्रौर जिहामें तब्दीलियाँ हुई, श्रौर धीरे-धीरे ध्वनि हो नहीं, वर्णके उच्चारणुमें भी वह समर्थ हुआ्रा । अमने मनुष्यको समाज्ञ दिया, समाजने उसे भाषा दी । पशु हमारी भाषा नहीं बोल सकते; क्योक्ति उनके पास विकसित शब्द-यंत्र नहीं हैं । किन्वु, जब वह हमारे समाजमें आरा जाते हैं, तो वह कितने दी शब्दो- को पहचानने लगते हैं । कुत्ते, घोड़े, द्ाथीको हम रोज़ इस तरह पने शब्दॉंपर काम करते देखते हैं । कुत्ते जिस मुल्कवाले मालिक- के पास रहते हैं, उनकी ही भाषाके शब्दोंका झनुसरण करते हैं । स्नेद-भक्तिका मान भी सानव-समाजमें श्ाकर उनका ऊँचा हों जाता है । मालिककों देरसे मिलनेपर सीखा कुत्ता जिस प्रयत्नके साथ घ्वनि निकालता है, यदि उसके पास ध्वनि-यंत्र दोता; तो इसमें शक नहीं, वद्द उन्हें श्रौर स्पष्ट रीतिसे प्रकट करता । प्राणियोंमें मनुष्यों के वाद सबसे ज़्यादा विकसित ध्वनि-यंत्र चिड़ियोंका है । उनके कलगान




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